41 साल तक बेटा बनकर रहा ठग, बेची करोड़ों की संपत्ति, नालंदा के फर्जी बेटे की कहानी
बिहार के नालंदा जिले के सिलाव (वर्तमान में बेन) थाना क्षेत्र के रहने वाले स्व. कामेश्वर सिंह जमींदार थे. उनकी 2 अरब से ज्यादा की संपत्ति है. साल 1977 में कामेश्वर सिंह का इकलौते बेटे कन्हैया 10वीं का एग्जाम देने चंडी गया था, जहां से वह गायब हो गया.
यह हैरान कर देने वाला मामला बिहार के नालंदा जिले का है, जहां एक ठग 41 साल तक एक जमींदार परिवार का फर्जी बेटा बनकर रहा और इस दौरान उसने परिवार की करोड़ों की संपत्ति बेच डाली। सिलाव (वर्तमान में बेन) थाना क्षेत्र के जमींदार स्व. कामेश्वर सिंह के इकलौते बेटे कन्हैया सिंह साल 1977 में 10वीं का एग्जाम देने के लिए चंडी गए और वहीं से गायब हो गए। बेटे के न लौटने पर परिवार ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई और उसकी तलाश में जुट गया।
साधु के वेश में आया दयानंद, खुद को बताया कन्हैया
कन्हैया के लापता होने के करीब पांच साल बाद, साल 1981 में जमुई का रहने वाला दयानंद नाम का एक युवक साधु के वेश में कामेश्वर सिंह के गांव मोरगावां पहुंचा और खुद को उनका खोया हुआ बेटा कन्हैया बताने लगा। 75 वर्षीय कामेश्वर सिंह, जिनकी दृष्टि कमजोर थी, उसे अपना बेटा समझकर गले लगा लिया। गांव वालों ने भी उसे कन्हैया मानकर बुजुर्ग के साथ घर भेज दिया। हालांकि, जब कामेश्वर की पत्नी रामसखी और बेटी विद्या पटना से लौटीं, तो मां रामसखी ने तुरंत पहचान लिया कि यह उनका बेटा नहीं है, क्योंकि असली कन्हैया के सिर के बाईं ओर चोट का निशान था, जो दयानंद के सिर पर नहीं था।
कानूनी लड़ाई और करोड़ों की संपत्ति की बिक्री
पत्नी रामसखी ने पति के स्वस्थ होने पर 1981 में दयानंद के खिलाफ केस दर्ज कराया। यह मामला 1991 में पटना जिला कोर्ट में टाइटल सूट हुआ। इस कानूनी लड़ाई के बीच 1995 में कामेश्वर सिंह और उनकी पत्नी रामसखी दोनों की मौत हो गई। इसके बावजूद, उनकी बेटी विद्या ने इस कानूनी लड़ाई को जारी रखा। इस दौरान, फर्जी बेटा बनकर रह रहे दयानंद ने परिवार की करीब 2 करोड़ रुपये मूल्य की 50 से 55 बीघा जमीन बेच डाली। साथ ही, उसे खेत में पाइप लाइन डालने का मुआवजा भी मिला। यह मामला नालंदा कोर्ट से शुरू होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
डीएनए टेस्ट से इनकार और 41 साल बाद सजा
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नालंदा कोर्ट में दोबारा सुनवाई शुरू हुई। जिला अभियोजन पदाधिकारी के अनुसार, साल 2014 से ही अभियोजन पक्ष डीएनए टेस्ट कराने की मांग कर रहा था, जिससे दयानंद लगातार इनकार कर रहा था। अंततः, साल 2022 में दयानंद ने कोर्ट में लिखित रूप से डीएनए टेस्ट कराने से मना कर दिया। इसके अलावा, वह 1977 से 1981 के बीच अपने ठिकाने के बारे में भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया।
कोर्ट का फैसला: 3 साल की जेल
सिर पर चोट के निशान का न होना, डीएनए टेस्ट से इनकार करना और अपनी पिछली गतिविधियों का स्पष्टीकरण न दे पाने के आधार पर बिहारशरीफ कोर्ट ने 41 साल बाद साल 2022 में दयानंद को दोषी ठहराया। कोर्ट ने उसे 3 साल की जेल और 10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। इस पूरी घटना को 47 साल बीत जाने के बाद भी असली बेटा कन्हैया सिंह अब तक लापता है और उसका कोई पता नहीं चल पाया है।