Bihar News: नालंदा का लाल शहीद, जम्मू-कश्मीर में देश के लिए कुर्बान, पिता का सीना गर्व से चौड़ा, बोले- “बुढ़ापे की लाठी देश के काम आई”
Bihar News: नालंदा का उतरथु गांव आज गम और गर्व के मिले-जुले भाव में डूबा है। देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए शहीद के पिता पिता प्रताप राउत की आंखों में आंसू हैं, लेकिन सीने में गर्व का पहाड़ भी है।...
Nalanda: नालंदा जिले का उतरथु गांव आज शोक और गर्व के एक अजीब मिश्रण में डूबा हुआ है। बिंद थाना क्षेत्र के वीर सपूत, सेना के जवान सिकंदर राउत, जम्मू-कश्मीर में देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके पिता प्रताप राउत की आंखों से आंसू बह रहे हैं, लेकिन उनका सीना गर्व से चौड़ा है। कांपते हाथों में लाठी थामे उन्होंने कहा, "बुढ़ापे में भगवान ने बेटा छीन लिया, लेकिन गर्व है कि वह लाठी देश के काम आई। मेरे बेटे ने भारत मां के लिए जान दी, इससे बड़ा सौभाग्य किसी पिता के लिए क्या हो सकता है?" यह शब्द न केवल एक पिता के गहरे दर्द को व्यक्त करते हैं, बल्कि उस शहीद की बहादुरी की कहानी को भी अमर करते हैं, जिसने अपनी जान देश के लिए न्योछावर कर दी।
उतरथु गांव के एक साधारण परिवार से निकले सिकंदर राउत एक असाधारण नायक थे। दो भाइयों में छोटे, सिकंदर बचपन से ही साहसी और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। गांव के लोग बताते हैं कि उनका सपना सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना था। उन्होंने न केवल इस सपने को साकार किया, बल्कि जम्मू-कश्मीर के अग्रिम मोर्चे पर अपने प्राणों की आहुति देकर इसे अमर बना दिया। कुछ महीने पहले तक वह झारखंड के रांची में तैनात थे, लेकिन 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण उन्हें जम्मू-कश्मीर भेजा गया था। वहां, देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया।
शहीद की शहादत की खबर जैसे ही गांव पहुंची, उतरथु में मातम पसर गया। लोग उनके घर पर शोक व्यक्त करने और शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उमड़ पड़े। सिकंदर अपने पीछे दो छोटे बेटे और एक परिवार छोड़ गए हैं, जो अब इस दुख को गर्व के साथ सहन कर रहा है। परिवार के सदस्य शहीद का पार्थिव शरीर लाने के लिए रवाना हो चुके हैं, और जैसे ही उनका शव गांव पहुंचेगा, पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सिकंदर की शहादत ने नालंदा के उतरथु गांव को देश के मानचित्र पर एक नई पहचान दिलाई है। ग्रामीणों के लिए वह सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि उनके गौरव का प्रतीक हैं। एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, "सिकंदर बचपन में जब गांव की गलियों में खेलता था, तभी उसकी आंखों में देशभक्ति की चमक दिखाई देती थी। उसने वही किया जो उसने कहा था—देश के लिए कुछ करूंगा।" उनकी इस भावना ने न केवल गांव, बल्कि पूरे नालंदा को गौरवान्वित किया है।
सिकंदर के दो छोटे बेटों का भविष्य अब सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन क्या उन्हें वह सम्मान और सहायता मिलेगी जिसके वे हकदार हैं? बिहार में शहीदों के परिवारों की दुर्दशा की कहानियां कोई नई बात नहीं हैं। नालंदा जैसे ग्रामीण इलाकों में, जहां बुनियादी सुविधाएं भी एक सपना हैं, शहीदों के परिवारों के लिए जीवन और भी कठिन हो जाता है।
पाकिस्तान की ओर से लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन और आतंकी गतिविधियों को देखते हुए भारत की सेना हर मोर्चे पर सतर्क है। लेकिन सिकंदर की शहादत यह याद दिलाती है कि हर सैनिक के पीछे एक परिवार है, एक गांव है, और एक ऐसी कहानी है जो देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर देती है।
सिकंदर राउत की शहादत सिर्फ एक परिवार या गांव की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके पिता प्रताप राउत के शब्द—"उसकी लाठी देश के काम आई"—हर भारतीय के लिए एक गहरा संदेश हैं। लेकिन इस गर्व के साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी आती है। सरकार को चाहिए कि सिकंदर के परिवार को न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करे, बल्कि उन्हें सम्मान और सुरक्षा भी सुनिश्चित करे। उनके बच्चों की शिक्षा और भविष्य को संवारना देश का कर्तव्य है।
नालंदा के उतरथु गांव में जब सिकंदर का पार्थिव शरीर पहुंचेगा, तो वह सिर्फ एक मृत शरीर नहीं होगा; वह एक शहीद होगा, जिसने अपनी जान देकर भारत मां की रक्षा की। गांव की गलियां, जहां सिकंदर कभी खेला करते थे, अब उनकी बहादुरी की गाथा गाएंगी। लेकिन यह गाथा तभी पूरी होगी, जब समाज और सरकार उनके परिवार को वह सम्मान देंगे जो एक शहीद का हकदार होता है।
सिकंदर राउत की शहादत नालंदा के लिए गहरा दुख है, लेकिन पूरे देश के लिए यह गर्व का क्षण है। उनके पिता का अटूट गर्व और उनकी अद्वितीय वीरता यह साबित करती है कि भारत का हर सैनिक, चाहे वह किसी भी गांव से हो, देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
रिपोर्ट- राज पाण्डेय