Bihar News: नालंदा में जिला परिषद की 'चाय' पर उधार का तमाशा, 1.25 लाख का बकाया, 24 महीने से कर्ज में डूबा चायवाला कारू राम!"

Bihar News: मजदूर दिवस के मौके पर जहां देशभर में श्रमिकों के सम्मान में बड़े-बड़े भाषण और वादे किए जा रहे थे, वहीं नालंदा जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है,जो प्रशासन की संवेदनहीनता और लापरवाही को उजागर करती है। ...

नालंदा जिला परिषद अध्यक्ष तनुजा कुमारी
जिला परिषद की 'चाय' पर उधार का तमाशा- फोटो : Reporter

Bihar News: मजदूर दिवस के अवसर पर, जब देश भर में श्रमिकों के सम्मान की बातें हो रही थीं, बिहार के नालंदा जिले से एक शर्मनाक खबर सामने आई है। बिहारशरीफ जिला परिषद कार्यालय में वर्षों से चाय की दुकान चलाने वाले कारू राम पिछले दो सालों से अपने 1.25 लाख रुपये के मेहनताने के लिए तरस रहे हैं। यह बकाया राशि न केवल उनके और उनके परिवार की आजीविका के लिए खतरा बन गई है, बल्कि प्रशासन की संवेदनहीनता का भी जीता-जागता उदाहरण है। मजदूर दिवस पर यह मामला नालंदा प्रशासन की पोल खोलता है और यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हमारे सिस्टम में मेहनतकशों की मेहनत का कोई मोल नहीं है?

कारू राम की कहानी नालंदा जिला परिषद कार्यालय में चाय की दुकान की एक लंबी परंपरा का हिस्सा है। उनके दादा और परदादा भी इसी परिसर में चाय बेचते थे, और कारू राम ने भी इस पुश्तैनी धंधे को ईमानदारी से निभाया। उन्होंने वर्षों तक जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और कर्मचारियों को चाय परोसी, लेकिन पिछले दो सालों में उनकी चाय का बकाया 1.25 लाख रुपये तक पहुंच गया है। यह राशि पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष के कार्यकाल से लेकर वर्तमान अध्यक्ष तनुजा कुमारी के कार्यकाल तक जमा होती रही।

कारू राम अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं, "मैंने विश्वास के साथ चाय पिलाई, लेकिन अब हालत यह है कि उधार लेकर चाय बना रहा हूं। कब पैसा मिलेगा, यह मुझे खुद नहीं पता।" कर्ज के बोझ तले दबे कारू राम अब अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।

जिला परिषद अध्यक्ष का बयान: लापरवाही स्वीकारी, समाधान का वादा

वर्तमान जिला परिषद अध्यक्ष तनुजा कुमारी ने इस मामले में प्रशासनिक लापरवाही स्वीकार की है। उन्होंने कहा, "वास्तव में भुगतान लंबित हैं, और यह प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी का परिणाम है। हम जल्द ही इस समस्या का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं।" तनुजा ने यह भी बताया कि कारू राम अकेले नहीं हैं; परिषद में कई अन्य सेवाप्रदाताओं के भुगतान भी अटके हुए हैं। 

मजदूर दिवस पर सवाल: मेहनत की कीमत?

1 मई को मनाया जाने वाला मजदूर दिवस श्रमिकों के सम्मान और उनके योगदान को समर्पित है, लेकिन कारू राम की कहानी इस दिन की प्रासंगिकता पर सवाल उठाती है। जब एक चायवाला, जो जिला परिषद जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र में अपनी सेवाएं देता है, दो साल तक अपनी मेहनत की कमाई के लिए तरसता है, तो यह व्यवस्था की गहरी खामियों को उजागर करता है। नालंदा, जो कभी ज्ञान की भूमि के रूप में विख्यात था, आज एक मेहनतकश की बदहाली की कहानी कह रहा है।

बहरहाल कारू राम की कहानी नालंदा में प्रशासन की संवेदनहीनता का एक दुखद उदाहरण है। मजदूर दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन पर यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वास्तव में हमारा सिस्टम मेहनतकशों की मेहनत का सम्मान करता है? 

रिपोर्ट- राज पाण्डेय


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