20 साल में पहली बार बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर : नीतीश के पास नहीं, अब सम्राट चौधरी के पास होगा गृह विभाग
Patna - बिहार की राजनीति में एक दशक से अधिक समय बाद सबसे बड़ा प्रशासनिक बदलाव देखने को मिला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहली बार अपने 20 साल के कार्यकाल में गृह विभाग की जिम्मेदारी स्वयं से अलग कर दी है। यह विभाग अब उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंपा गया है।
गृह विभाग को मुख्यमंत्री का सबसे महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो माना जाता है, जिसे वह हमेशा अपने पास रखते आए थे। इस फैसले को एक बड़े राजनीतिक पुनर्गठन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जो राज्य की प्रशासनिक और सत्ता संरचना में आने वाले बड़े परिवर्तनों का पूर्वाभास देता है।
सीएम आवास से अब सम्राट चौधरी का घर होगा शक्ति का केंद्र
गृह विभाग को सम्राट चौधरी को सौंपने के साथ ही सत्ता के भौगोलिक केंद्र में भी बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। पारंपरिक रूप से, गृह विभाग की कमान संभालने वाला व्यक्ति ही राज्य की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और खुफिया तंत्र का सीधा नियंत्रण रखता है। अब तक यह नियंत्रण सीएम आवास से संचालित होता था, लेकिन अब यह माना जा रहा है कि सम्राट चौधरी का सरकारी आवास इस महत्वपूर्ण प्रशासनिक शक्ति का नया केंद्र बनेगा। यह बदलाव न केवल विभागों का हस्तांतरण है, बल्कि उपमुख्यमंत्री की पार्टी (बीजेपी) के भीतर बढ़ते कद और सरकार में उनकी अहमियत को भी दर्शाता है।
बीजेपी-जेडीयू के बीच शक्ति संतुलन का नया अध्याय
नीतीश कुमार का यह कदम बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के बीच शक्ति संतुलन को नए सिरे से परिभाषित करता है। गृह विभाग हमेशा से नीतीश कुमार के लिए एक नियंत्रण तंत्र रहा है, जिसके जरिए उन्होंने राज्य के प्रशासनिक ढांचे पर अपनी पकड़ बनाए रखी। इस विभाग को बीजेपी के नेता को सौंपना स्पष्ट करता है कि गठबंधन में बीजेपी का प्रभाव और हस्तक्षेप पहले से कहीं अधिक बढ़ा है। यह निर्णय आगामी चुनावों और भविष्य की राजनीतिक साझेदारी को देखते हुए बीजेपी को प्रशासन में अधिक भूमिका देकर संतुष्ट करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिससे दोनों दलों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जा सके।
राजनीतिक विरासत और भविष्य की राह के संकेत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस अभूतपूर्व कदम को उनकी राजनीतिक विरासत और भविष्य की भूमिका से जोड़कर भी देखा जा रहा है। एक तरफ यह संकेत है कि वह शायद अब दैनंदिन प्रशासन के बोझ से खुद को हल्का करना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ यह सम्राट चौधरी जैसे युवा और प्रभावशाली नेता को सशक्त बनाने का भी संकेत है। यह कदम एक ऐसी व्यवस्था की ओर इशारा करता है, जहाँ मुख्यमंत्री अपनी प्रशासनिक शक्तियों को साझा करते हुए गठबंधन के सहयोगी को अधिक विश्वास दे रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह प्रशासनिक फेरबदल बिहार की राजनीति की दिशा और दशा को कैसे प्रभावित करता है।