Bihar Election: Congress-RJD के गठबंधन की सिल्वर जुबली! 25 साल के सियासी साथ का लब्बोलुआब
25 साल से राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच गठबंधन जारी है.दोनों पार्टियों ने कभी मिलकर चुनाव लड़े तो कभी अलग-अलग. ये भी साफ है कि दोनों के बीच सियासी दोस्ती फायदे-नुकसान को देखते हुए ही होती है.ये बात अलग है कि कई बार चुनावी मजबूरियां दिखाई दी
N4N डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव होने में अभी चार महीने बाकी है. महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस सहित सभी सहयोगी दलों की अबतक चार बैठकें हुईं. तेजस्वी यादव ने सभी सहयोगी दलों से सीटों की सूची देने को कहा है. कांग्रेस और आरजेडी वालों के रुख से साफ है कि दोनों इस बार मिल कर चुनाव लड़ेंगे. सियासी दलों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं, लेकिन बिहार में पिछले 25 साल से राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच गठबंधन जारी है.दोनों पार्टियों ने कभी मिलकर चुनाव लड़े तो कभी अलग-अलग. ये भी साफ है कि दोनों के बीच सियासी दोस्ती फायदे-नुकसान को देखते हुए ही होती है.ये बात अलग है कि कई बार चुनावी मजबूरियां दिखाई देती हैं.
अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भी दोनों दल मिलकर लड़ेंगे. हालांकि, सीटों को लेकर आरजेडी और कांग्रेस में खींचतान जारी है. कांग्रेस इस बार ज्यादा और मनपसंद की सीटें चाहती हैं, जबकि आरजेडी का जोर है कि नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने के लिए अगर इंडिया गठबंधन में शामिल बड़ी पार्टियों को कुछ सीटें कम भी मिले, तो उन्हें सांप्रदायिक और जन विरोधी पार्टियों को हराने के लिए नरम रवैया का परिचय देने की जरूरत है. फिलहाल, कांग्रेस ने महागठबंधन को यह भरोसा दिया है कि वो चुनाव मिलकर ही लड़ेंगे. तेजस्वी यादव महागठबंधन का नेतृत्व करेंगे, लेकिन सीटों को लेकर अभी पेंच फंसी हुई है. लेकिन दोनों पार्टियों का दावा है की एक बात दोनों में कॉमन यह है कि दोनों सांप्रदायिक पार्टी (बीजेपी और उनके सहयोगी दलों) से समझौता नहीं करते.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में साथ साथ
कांग्रेस और आरजेडी ने पिछले 25 सालों में पांच लोकसभा तीन बार विधानसभा चुनाव साथ लड़े. इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में एक बार भी दोनों दल को मिलकर लड़ने का फायदा नहीं मिला. हां, ढाई दशक में चार चुनाव में दोनों दल मामूली बात पर अलग भी हुए, लेकिन, इसके बाद भी आशा के अनुरूप सफलता नहीं प्राप्त कर पाए.
मज़बूरी की दोस्ती और महागठबंधन
इस बात का जिक्र कर दें कि कांग्रेस और आरजेडी की दोस्ती की कहानी भी काफी दिलचस्प है. साल 1989 भागलपुर दंगों के बाद कांग्रेस, आरजेडी के मुस्लिम कार्ड में ऐसी फंसी की 1990 का चुनाव वह बुरी तरह हारी. यहीं से बिहार की सत्ता में कांग्रेस का पतन और लालू प्रसाद का दौर शुरू हो गया. इसके बाद साल 1995 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस आरजेडी से बुरी तरह हारी. एकीकृत बिहार (तब झारखंड बिहार का हिस्सा था) की 324 सीटों पर कांग्रेस ने किस्मत आजमाई थी. उसे सिर्फ 29 सीटों पर जीत मिली. जबकि आरजेडी 167 सीटें जीतने में कामयाब हुईं. इस चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस ने भांप लिया था कि बिहार में उसका दौर समाप्त हो चुका है.
बिहार के सियासी फिजां में इस बदलाव को देखते हुए 1998 में कांग्रेस ने आरजेडी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और दोनों दलों ने पहली बार 1998 में लोकसभा मिलकर चुनाव लड़ा. लोकसभा की 54 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस चार और आरजेडी के प्रत्याशी 17 सीटें जीतने में सफल हुए. इस बीच 13 माह बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद 1999 में फिर लोकसभा चुनाव की नौबत आ गई. इस बार कांग्रेस ने दो और आरजेडी ने सात लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की. यह चुनाव दोनों दलों के लिए निराशाजनक रहा.
एकला चली कॉग्रेस और 7 दिन के खातिर CM बने नीतीश
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीते दो चुनाव में हुए घाटे को देखते हुए अकेले चुनाव लड़ा. विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस के खाते में 23 सीटें आई. आरजेडी के खाते में 124 सीटें आई. यानी लालू की पार्टी बहुत तक नहीं पहुंच पाई. इसका लाभ उठाकर पहली बार नीतीश कुमार सात दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए. नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस आरजेडी ने हाथ मिला लिया और राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बन गईं. बिहार से कटकर झारखण्ड एक अलग राज्य बना.
2009 में कांग्रेस ने अकेले लड़ा चुनाव
लेकिन फिर एक बार 2004 का लोकसभा चुनाव दोनों दल साथ लड़े. 2005 के विधानसभा में भी कांग्रेस-आरजेडी एक साथ चुनाव लड़े. पंरतु साल 2009 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ी. इस चुनाव में आरजेडी से बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस का रहा. कांग्रेस ने लोकसभा की चार सीटें जीती तो राजद ने दो. साल 2010 विधानसभा चुनाव भी दोनों दल अलग लड़े. कांग्रेस के खाते में चार और आरजेडी के खाते में 22 सीटों आईं. साल 2014 में दोनों दल लोकसभा चुनाव में मिलकर लड़े, लेकिन मोदी लहर में कांग्रेस दो और आरजेडी चार सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाया. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी-कांग्रेस मोदी लहर के खिलाफ मैदान में उतरे. इस बार आरजेडी 80 और कांग्रेस 27 सीटें जीतने में कामयाब हुईं.
2019 में आरजेडी का हुआ था सफाया
लोकसभा चुनाव 2019 में आरजेडी का मोदी लहर में पूरी तरह सफाया हो गया, लेकिन कांग्रेस ने एक सीट पर जीत दर्ज की. 2020 के विधानसभा में भी दोनों दल साथ रहे. आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और कांग्रेस के खाते हुए 19 सीटों आईं. बिहार लोकसभा चुनाव भी दोनों दल एक साथ मिलकर लड़े, लेकिन एनडीए को हराने में सफलता नहीं मिली. साल 2024 में संपन्न लोकसभा चुनाव में जेडीयू 12, बीजेपी 12, एलजेपीआर 5, आरजेडी 4, कांग्रेस 3, सीपीआई एमएल 2, हम एक और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीती.
इस वर्ष ही बिहार विधानसभा चुनाव होने है. चुनाव गोने अभी अभी चार महीने बाकी है. महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस सहित सभी सहयोगी दलों की चार बैठकें हुईं.कांग्रेस और आरजेडी वालों के रुख से साफ है कि दोनों इस बार मिल कर चुनाव लड़ेंगे. पर कॉंग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर न केवल दावेदारी की कवायद में जुटी है बल्कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन की और से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने पर भी अपने पत्ते नहीं खोल रही है.