Bihar News : बेसा के पूर्व महासचिव डॉ. सुनील चौधरी ने इन्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस में बिहार का लहराया परचम, जानिए क्या बताई विकास की परिभाषा....

Bihar News : बेसा के पूर्व महासचिव डॉ सुनील चौधरी ने इन्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस में बिहार का परचम लहराया है. उन्होंने दो शोध पत्र प्रस्तुत किया. जिसके लिए उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया....पढ़िए आगे

Bihar News : बेसा के पूर्व महासचिव डॉ. सुनील चौधरी ने इन्टरन
डॉ सुनील चौधरी ने लहराया परचम - फोटो : SOCIAL MEDIA

PATNA : इण्डेफ (पूर्व) के पूर्व उपाध्यक्ष,बेसा के पूर्व महासचिव एवं  पथ निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता डॉ सुनील कुमार चौधरी ने चन्द्रगुप्त प्रबंधन संस्थान,पटना के कान्फ्रेस हाल में आयोजित थर्ड इन्टरनेशनल कान्फ्रेस ऑन "पब्लिक पॉलिसी एण्ड मैनेजमेंट" में दो शोध पत्र प्रस्तुत कर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर  बिहार का परचम लहराया। डॉ चौधरी के शोध पत्र का शीर्षक था 'द नेक्सस बिटवीन क्लाइमेट चेन्ज एण्ड पब्लिक हेल्थ:ए नेशनल ओवरभ्यू वीथ पर्सपेक्टिभ फॉर बिहार' और इम्पैक्ट असेसमेंट स्टडी ऑफ इम्प्रुभ्ड रोड मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ बिहार।' आपदारोधी , पर्यावरण के अनुकूल एवं संक्षरण रोधी समाज निर्माण के लिए कृतसंकल्पित तथा विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने को कटिबद्ध डॉ चौधरी ने प्रथम शोध पत्र में क्लाइमेट चेन्ज की चुनौतियो ,नेक्सस बिटवीन क्लाइमेट चेन्ज एण्ड पब्लिक हेल्थ, क्लाइमेट चेन्ज जनित आपदा,कारण एवं उनसे निपटने के उपायो पर विस्तार से चर्चा की। 

दूसरे शोध पत्र में बिहार में सड़क निर्माण एवं उसके बेहतर रखरखाव के कारण विभिन्न क्षेत्रो मे हो रहे अभूतपूर्व विकास,स्ट्रैटजी,इसके प्रौसेस एवं सस्टनेबलीटी एवं भविष्य के रोडमैप पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने डिजाइन एण्ड कंस्ट्रक्शन एव॔ इस फील्ड मे एडवान्सेस एव॔ चुनौतियो पर बडे ही रोचक ढंग से प्रकाश डाला। उन्होने बिहार में क्लाइमेट चेन्जजनित इश्यूज ,उनके प्रभाव,उनसे निपटने के उपाय,बिहार सरकार द्वारा उठाए गए कदम एवं नीड फॉर अर्जेन्ट एक्शन पर विस्तार से चर्चा की। पर्यावरण संरक्षण एवं आपदा  रोधी समाज निर्माण आन्दोलन के पर्याय बन चुके डॉ चौधरी ने भवनो, सड़क एवं पुलो को क्लाइमेट रेजिलिएन्ट, इनवरान्मेन्टली सस्टनेबल एवं सेल्फ़ सस्टनेबल बनाने के पहलुओं पर बड़े ही सहज-सरल एवं रोचक ढंग से प्रकाश डाला। 

उन्होने बताया कि भारत एक बहुआपदा प्रवण देश है जो बाढ एवं सुखाड़, आंधी एवं साइक्लौन की मार झेलता रहा है। उन्होने बताया कि जरूरी है कि भवनो एवं सड़को के  निर्माण एवं प्रबंधन में सेल्फ़ सस्टनेबल,इनवरान्मेन्टल सस्टनेबल,क्लाइमेट एवं  डिजास्टर  रेजिलिएन्ट एप्रोच अपनाया जाय। इनविरान्मेन्टल  सस्टनेबलिटी एवं क्लाइमेट रेजिलिएन्न्स विकास के साथ कार्बन फुट प्रिन्ट को कम करके की प्रक्रिया है । डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच डिजास्टर के साथ जीने की कला है । उन्होने बताया कि जिस तरह से जनसंख्या वृद्धि हो रही है एवं प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन बढ रहा है। क्लाइमेट रेजिलिएन्ट,सेल्फ़ सस्टनेबल एवं इनवरान्मेन्टल सस्टनेबल डिजाइन, कंस्ट्रक्शन एवं मेन्टिनेन्स को बढ़ावा देने की नितांत  जरूरत है। डॉ चौधरी ने मेसो,माइक्रो एवं मैक्रो लेवल  प्लानिंग में इनविरानमेन्टल सस्टनेबलिटी एवं क्लाइमेट रेजिलिएन्ट एप्रोच को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया । 

उन्होने बताया कि विकास ऐसा हो जो विनाश से बचाये ,विकास ऐसा हो जो  पर्यावरण को बचाये तथा विकास ऐसा हो जो सतत प्रगति की राह को दिखाये। भारत एवं बिहार में इनविरानमेन्टली सस्टनेबल ग्रीन कौस्ट इफेक्टिव एण्ड क्लाइमेट रेजिलिएन्ट भवनो एवं सड़क के निर्माण एवं प्रबंधन की बात करनी है तो इनोवेटिव, कौस्ट इफेक्टिव एण्ड ग्रीन रिवोल्यूशनरी टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना होगा। साथ ही पॉलिसी एवं गवर्नेंस में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा । डॉ चौधरी ने इन्टिग्रेटेड एप्रोच अपनाने की जरूरत बताई । साथ ही सेल्फ सस्टनेबल एवं ग्रीन ट्रान्सपोर्ट की जोरदार वकालत की । इसके लिए समाज में लोगों को जागरूक करना होगा । डॉ चौधरी ने निर्माण कार्य में अभिकल्प एवं मटेरियल के विशिष्टयो एवं प्रबंधन नीतियों में बदलाव की जरूरत की जोरदार वकालत की एवं इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई। उन्होने बताया कि इनवरान्मेन्टल सस्टनेबल, क्लाइमेट रेजिलिएन्स एवं सेल्फ़ सस्टनेबल डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन  पर समाज के हर तबके को जागरूक करने के अभियान को एक आन्दोलन का रूप देकर  पूरा देश में फैलाने की जरूरत है । डॉ चौधरी अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के तकनीकी एवं सामाजिक संगठनों से जुड़कर जलवायु परिवर्तन जनित आपदा एवं उससे निपटने के लिए  डिजास्टर रेजिलिएन्ट  एवं कौस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं । 

उन्होंने अपनी प्रस्तुती निम्न पंक्तियो के साथ समाप्त की। हो गई है पीड पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। सिर्फ शोध करना ही मेरा मतलब नही। सारी कोशिश है कि  ए सूरत बदलनी चाहिए। अन्त मे प्रशस्तिपत्र देकर उन्हे सम्मानित किया गया।