Bihar land:बिहार में दाखिल-खारिज और रैयतों की किस्मत अब होगी ऑनलाइन दरबार में तय, ऑफलाइन प्रक्रिया समाप्त, 20 सितंबर तक चलेगा राजस्व महाअभियान
Bihar land: सत्ता के गलियारों से लेकर खेत-खलिहान तक सिर्फ़ एक ही चर्चा है"जमाबंदी की कॉपी मिली या नहीं?"...
Bihar land:बिहार की राजनीति इस वक्त ज़मीन के मुद्दे पर गरमाई हुई है। राजस्व महाअभियान ने गाँव-गाँव और पंचायत-पंचायत तक दस्तक दे दी है। सत्ता के गलियारों से लेकर खेत-खलिहान तक सिर्फ़ एक ही चर्चा है"जमाबंदी की कॉपी मिली या नहीं?"
16 अगस्त से शुरू हुआ ये महाअभियान, अब अपनी आख़िरी मंज़िल की ओर है। 20 सितंबर को जब घड़ी अंतिम तारीख़ पर टिकेगी, तब तक हर रैयत को ये मालूम हो जाएगा कि उसका हक़दाराना दावा दाखिल-खारिज पोर्टल और परिमार्जन प्लस पोर्टल पर किस मुक़ाम तक पहुँचा।
आँकड़े बताते हैं कि पूरे बिहार में 7514 शिविर लगे, और 12 लाख से ज़्यादा आवेदन दाख़िल हुए। इनमें सबसे बड़ा हिस्सा—करीब 9 लाख से ऊपर—जमाबंदी सुधार का है। यानि वर्षों से कागज़ी फाइलों में दबी ज़मीन की कहानियाँ अब डिजिटल दफ़्तर के हवाले हैं।
औरंगाबाद, अररिया और पटना टॉप थ्री ज़िलों में हैं, जहाँ आवेदनों की बाढ़ आ गई। ये कहीं न कहीं बिहार की जमीनी हक़ीक़त बयान करती है कि लोग अपने काग़ज़ात और हक़-हक़ूक़ को लेकर कितने परेशान रहे होंगे।
सरकार का दावा है कि अब तक करीब 77% से ज़्यादा जमाबंदी की प्रति बाँट दी गई है। जहानाबाद, सीतामढ़ी और शिवहर इस रेस में सबसे आगे निकले। पर सवाल ये है कि क्या बाक़ी जिलों में ये काम उसी रफ़्तार से होगा, या फिर ये भी महज़ सरकारी "ताम-झाम" बनकर रह जाएगा?
अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह का फ़रमान साफ़ है कि किसी भी हालत में आवेदनों को ठुकराना नहीं है। हर रैयत की अर्जी दर्ज होगी और मोबाइल पर कार्रवाई की पूरी जानकारी मिलेगी।" सुनने में ये बात लोकतंत्र की जीत लगती है, लेकिन जमीनी सच्चाई अक्सर "फ़ाइलों और दलालों" के चक्रव्यूह में फँस जाती है।
राजनीतिक हलकों में इसे "डिजिटल ज़मींदारी उन्मूलन" की कोशिश बताया जा रहा है। विपक्ष सवाल उठा रहा है किक्या ये महाअभियान सिर्फ़ आंकड़े चमकाने का खेल है, या सचमुच किसानों-रैयतों को इंसाफ़ मिलेगा?
20 सितंबर का दिन इस पूरे मिशन का इम्तेहान साबित होगा। तब पता चलेगा कि ये राजस्व महाअभियान बिहार के लिए "ज़मीन सुधार की क्रांति" है, या फिर एक और सरकारी नौटंकी।