Bihar Assembly Speaker Election: बिहार में स्पीकर पद पर खींचतान तेज जेडीयू बनाम बीजेपी, किसे मिलेगा विधानसभा अध्यक्ष का पद?
Bihar Assembly Speaker Election: बिहार में नई सरकार बनते ही विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर जेडीयू और बीजेपी के बीच रस्साकशी तेज हो गई है। जेडीयू पावर बैलेंस का हवाला दे रही है, जबकि बीजेपी मजबूत दावेदारी के साथ मैदान में है।
Bihar Assembly Speaker Election: जेडीयू खेमे का कहना है कि सत्ता-संतुलन बनाए रखने के लिए स्पीकर का पद उसे मिलना चाहिए। पार्टी के नेता तर्क दे रहे हैं कि बिहार विधान परिषद का अध्यक्ष पहले ही बीजेपी के पास है। गृह मंत्रालय भी इसी बार बीजेपी को सौंप दिया गया है। गठबंधन को सहज रूप से चलाने के लिए प्रमुख पदों का बंटवारा बराबरी से होना चाहिए जेडीयू से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नीतीश कुमार खुद भी गठबंधन में संतुलन बनाए रखने के समर्थक हैं, इसलिए स्पीकर का पद जेडीयू को मिलना स्वाभाविक है।
बीजेपी का सन्नाटा
भले ही बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया, मगर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के हालिया वक्तव्य बताते हैं कि वह स्पीकर पद पर अपनी दावेदारी मजबूत मानती है।बीजेपी का मनोबल इन कारणों से ऊंचा है क्योंकि विधानसभा में उसका जनाधार जेडीयू से बड़ा है। उसके दो उपमुख्यमंत्री है। पहली बार गृह मंत्रालय जैसे ‘हाई-पावर’ विभाग की जिम्मेदारी बीजेपी के खाते में गई है। पार्टी संगठन और नेतृत्व की वर्तमान स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल जैसे नेता लगातार यह संकेत दे रहे हैं कि सरकार मजबूत और निर्णायक ढंग से चलेगी—जिसे जेडीयू दबाव की राजनीति के रूप में देख रही है।
स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?
विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव कई चरणों से गुजरता है। पहले राज्यपाल विशेष सत्र बुलाते हैं।इसके बाद प्रोटेम स्पीकर नए विधायकों को शपथ दिलाते हैं।शपथ ग्रहण के बाद सदन अध्यक्ष का चुनाव करता है, जिसमें सामान्यतः सत्ता पक्ष का उम्मीदवार बिना विरोध जीत जाता है।मगर इस बार स्थिति अलग है। जेडीयू और बीजेपी दोनों ही इसे ‘प्रतिष्ठा का पद’ मानकर अपने-अपने नामों पर अडिग हैं।
सरकार बाहर से स्थिर भीतर बढ़ती खींचतान के संकेत
एनडीए सरकार बाहरी तौर पर एकजुट दिख रही है, लेकिन गठबंधन के भीतर दबाव की राजनीति साफ नज़र आने लगी है। गृह मंत्रालय बीजेपी को मिलने के बाद जेडीयू को यह डर सताने लगा है कि कहीं सत्ता-संतुलन बिगड़ न जाए, इसीलिए उसने स्पीकर पद को लेकर अपना रुख पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक कर दिया है।अगले कुछ दिनों में यह साफ हो जाएगा कि विधानसभा की कमान किसके हाथ में जाएगी।यह फैसला सिर्फ एक पद का नहीं, बल्कि अगले पाँच साल में एनडीए सरकार के भीतर शक्ति-संतुलन और राजनीतिक समीकरण को भी तय करेगा।