कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में बिहार की कई जातियों को साधने का निकलेगा फार्मूला, आरक्षण को बढ़ाने पर होगा बड़ा फैसला

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में बिहार की जातीय राजनीति को साधने के लिए एक अहम प्रस्ताव लाया जा सकता है जिसका देशव्यापी असर देखने को मिल सकता है.

Congress Working Committee meeting- फोटो : news4nation

Congress Working Committee : आजादी के बाद पहली बार बुधवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक पटना में हो रही है. बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस बैठक को काफी अहम माना जा रहा है. वर्ष 1990 के बाद से बिहार में लगातार पिछड़ती रही कांग्रेस अब खुद को नए जोश-खरोश के साथ चुनावी समर में उतारना चाहती है. आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस बैठक को कांग्रेस का बड़ा शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है. सुबह 10 शुरू होकर शाम 4 बजे तक चलने वाली इस बैठक में बिहार को लेकर खास रणनीति सेट की जा सकती है. इसमें कांग्रेस को सीट की संख्या के बजाय जीत की संभावना वाली सीट पर चुनाव लड़ने पर फोकस करना मुख्य रणनीति का हिस्सा हो सकता है. गठबंधन में सीट बंटवारे पर चर्चा के दौरान पार्टी सिर्फ उन सीट पर अपनी दावेदारी जताएगी, जहां जीत की संभावनाएं हैं. इसके लिए कुछ सीट की अदला-बदली भी की जा सकती है.


1990 के बाद से गिरावट शुरू

1990 में कांग्रेस को केवल 71 सीटों पर जीत मिली और 103 उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हो गई। 1995 में यह गिरावट और तेज हो गई जब पार्टी को सिर्फ 29 सीटें मिलीं और 167 उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हो गई। 2000 में कांग्रेस को महज 23 सीटों से संतोष करना पड़ा और 231 उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हो गई। वहीं झारखंड अलग होने के बाद वर्ष 2005 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 51 सीटों पर उम्मीदवार उतारा और सिर्फ 9 सीट जीत पाई. 2010 में स्थिति और भी खराब हो गई जब 243 में से सिर्फ 4 सीटें जीत पाईं और 216 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। वहीं 2015 में पार्टी ने केवल 41 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 27 सीटें जीत लीं, यह गठबंधन की राजनीति का असर था, न कि कांग्रेस की खुद की ताकत का क्योंकि तब लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ मिलकर कांग्रेस उतरी थी। वहीं 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटों पर जीत सकी।


63 फीसदी ईबीसी और ओबीसी

बहरहाल कांग्रेस 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में पूरी तरह जुट गई है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आश्वस्त है कि इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव से बेहतर होगा। इसके लिए कुछ जातीय समीकरणों को साधने में कांग्रेस लगी है. बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी EBC की आबादी 36 फीसदी है. जाति गणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार सरकार की अति पिछड़ा सूची में 25 जातियां शामिल हैं. इनमें कपरिया, कानू, कलंदर, कोछ, कुर्मी, खंगर, खटिक, वट, कादर, कोरा, कोरकू, केवर्त, खटवा, खतौरी, खेलटा, गोड़ी, गंगई, गंगोता, गंधर्व, गुलगुलिया, चांय, चपोता, चन्द्रवंशी, टिकुलहार, तेली (हिंदू व मुस्लिम) और दांगी शामिल हैं. दूसरे नंबर पर ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या है, जो 27 फीसदी हैं. इस तरह राज्य में कुल पिछड़े 63 फीसदी हैं, लेकिन उसमें भी कैटिगराइजेशन कर दिया गया है और EBC क्लास 36 पर्सेंट के साथ सबसे बड़ा समूह है.


दलितों की आबादी 20 फीसदी

बिहार की आबादी में दलित आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है.इसमें अनुसूचित जाति यानी एससी वर्गों की आबादी 19.65 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जन जाति वर्ग में 1.06 प्रतिशत आबादी है. दलितों में दुसाध पासवान जाति की कुल आबादी 69 लाख 43 हजार है, जो राज्य की कुल आबादी का 5.31 प्रतिशत है.वहीं दलितों में यह सबसे बड़ा वर्ग है.  दलितों में दूसरे नंबर पर रविदास यानी चमार जाति की आबादी भी 5.25 फीसदी है.  वहीं मुसहर जाति की आबादी 3.08 फीसदी है. इन तीन जातियों की आबादी कुल दलित जनसंख्या में करीब 14 फीसदी है. 


राहुल गांधी के प्रमुख टारगेट

बिहार की राजनीति में जातियों की प्रमुखता से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में जाति आधारित राजनीति का काट खोजने के लिए राहुल गांधी एक साथ कई जातियों को टारगेट कर बिहार में कांग्रेस के लिए बड़ा करना चाहते हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जातीय राजनीति को साधने के लिए आरक्षण को 65 फीसदी करने और इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने पर प्रस्ताव आ सकता है. साथ ही महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों के साथ सीटों के शेयरिंग को अंतिम रूप देने पर फार्मूला बन सकता है.