बिहार के 'सिंघम' पूर्व IPS शिवदीप लांडे की चुनावी एंट्री, क्यों चुनीं जमालपुर और अररिया सीटें?
बिहार के सिंघम के नाम से चर्चित पूर्व IPS शिवदीप लांडे ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा की है। क्यों चुनीं यही दो जमालपुर और अररिया सीटें?
बिहार में 'सिंघम' के नाम से मशहूर पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे अब राजनीति में कदम रख रहे हैं। उन्होंने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मुंगेर जिले की जमालपुर और सीमांचल की अररिया सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
लेकिन सवाल उठता है कि लांडे ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के लिए यही दो सीटें क्यों चुनीं? इसका जवाब उनकी पुलिस सेवा के भावनात्मक जुड़ाव में छिपा है।
जमालपुर: संघर्ष का पहला अध्याय और भावनात्मक रिश्ता
महाराष्ट्र के अकोला से ताल्लुक रखने वाले 2006 बैच के आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे की पहली पोस्टिंग मुंगेर जिले में हुई थी, और यहीं से उन्हें 'बिहार का सिंघम' कहा जाने लगा।
नक्सलवाद पर लगाम
प्रोबेशन पीरियड में ही लांडे को धरहरा-खड़गपुर थाने की जिम्मेदारी दी गई थी। उस दौरान नक्सल प्रभावित पहाड़ी इलाकों में उन्होंने न सिर्फ ऑपरेशन चलाए, बल्कि ग्रामीणों के साथ गहरा भरोसे का रिश्ता भी बनाया।
जनता का बेटा
लांडे ने जमालपुर के गरीब बच्चों को किताबें दीं, लड़कियों की शादी में मदद की और स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए। रिटायरमेंट के बाद भी वे अक्सर इस इलाके के लोगों से मिलते रहे। इसी इमोशनल अटैचमेंट के कारण जमालपुर के लोग उन्हें आज भी 'जनता का बेटा' मानते हैं।
लांडे का कथन
लांडे खुद कहते हैं, "जमालपुर मेरे लिए सिर्फ पोस्टिंग नहीं, एक भावनात्मक रिश्ता है। वह जगह मेरी सेवा की शुरुआत और मेरे जीवन की सीख दोनों का प्रतीक है।"
अररिया: सेवा का स्वर्णकाल और अटूट विश्वास
जमालपुर के बाद, लांडे की तैनाती अररिया जिले में पुलिस अधीक्षक (SP) के पद पर हुई, जहाँ से उनकी ख्याति पूरे बिहार में फैल गई।
अपराधियों पर नकेल
अररिया में रहते हुए लांडे ने बिना किसी दबाव के अंतरराष्ट्रीय तस्करों के खिलाफ कार्रवाई की। उन्होंने नशीली दवाओं, हथियारों और पशु तस्करी जैसे सीमांचल के संगठित अपराध पर ऐतिहासिक रूप से लगाम कसी।
महिलाओं के रक्षक
लांडे छात्राओं और महिलाओं के लिए 'सिंघम भैया' बन गए। वह अक्सर स्कूलों-कॉलेजों में जाकर लड़कियों को अपना मोबाइल नंबर देते थे और छेड़छाड़ की शिकायत करने पर तुरंत कार्रवाई करते थे।
जनता का IPS
उनके सख्त और ईमानदार रवैये के कारण अररिया के लोग उन्हें 'जनता का एसपी' कहते थे। जब उनका तबादला हुआ था, तो हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे।
राजनीति में आने का कारण
लांडे ने VRS लेते समय कहा था, "मैंने सिर्फ वर्दी उतारी है, सेवा नहीं।" उनका मानना है कि सिस्टम को अंदर जाकर ही सुधारा जा सकता है, इसलिए वह जनता के बीच आकर उनकी समस्याओं को सीधे हल करना चाहते हैं।
लांडे का स्पष्टीकरण
जब उनसे इन दोनों सीटों को चुनने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा: "जमालपुर मेरी सेवा का पहला अध्याय है, और अररिया मेरी जनता के विश्वास का दूसरा। मैं वहां से लड़ना चाहता हूं, जहां लोग मुझे जानते हैं, मुझ पर भरोसा करते हैं।"
लांडे के अनुसार, जमालपुर उनके संघर्ष की शुरुआत की प्रतीक है, जबकि अररिया उनके सेवा के स्वर्णकाल की। वे 2025 में किसी पार्टी के टिकट से नहीं, बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे।