क्राइम इन्वेस्टिगेशन पर हाईकोर्ट की सर्जिकल स्ट्राइक, अब बिहार पुलिस को चूक का नहीं मिलेगा बहाना, हर थानेदार और जांच अधिकारी SOP के मुताबिक़ ही कार्रवाई करेगा, जान लीजिए क्या है स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर

Bihar Police SOP: पटना हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों की जांच में पुलिस की लापरवाही पर कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए 15 पॉइंट्स की स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर जारी कर दी है। ..

क्राइम इन्वेस्टिगेशन पर हाईकोर्ट की सर्जिकल स्ट्राइक- फोटो : social Media

Bihar Police SOP: पटना हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों की जांच में पुलिस की लापरवाही पर कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए 15 पॉइंट्स की स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी कर दी है। अदालत का कहना है कि अब अपराधियों को बचने का रास्ता नहीं मिलेगा क्योंकि हर केस की जांच वैज्ञानिक और प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में करनी होगी।

पश्चिमी चंपारण के मझौलिया थाना क्षेत्र के एक हत्या केस की सुनवाई में हाईकोर्ट ने पाया कि पुलिस की जांच बेहद लापरवाह रही।अपीलकर्ता का बयान तक दर्ज नहीं किया गया।आरोपी की बंदूक न तो जब्त हुई, न सील की गई, न ही बैलिस्टिक एक्सपर्ट के पास भेजी गई।मृतक के खून से सने कपड़े भी बरामद नहीं हुए।

इन चूकों की वजह से आरोपी को कोर्ट से बरी करना पड़ा। इसी को देखते हुए जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस डॉ. अंशुमान की बेंच ने गुरुवार को सख़्त निर्देश जारी किए।

गृह विभाग के प्रधान सचिव और डीजीपी को निर्देश: SOP का कड़ाई से पालन हो।

90 दिनों में रिपोर्ट हाईकोर्ट में जमा करनी होगी।

हर थानेदार और जांच अधिकारी SOP के मुताबिक़ ही कार्रवाई करेगा।

हाईकोर्ट की 15 सख़्त गाइडलाइन्स

घटनास्थल का मुआयना और स्केच मैप तैयार करना।

सूचना देने वाले और चश्मदीद गवाहों से पूछताछ; समय-तारीख डायरी में दर्ज।

गवाह पहचान कर सकते हों तो तुरंत टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) कराना।

आरोपी की गिरफ्तारी पर सीआरपीसी 161 के तहत बयान दर्ज।

आरोपी के खुलासे पर मिली वस्तु या तथ्य को जब्ती सूची बनाकर सील करना।

जब्त सामग्री पर केस नंबर, आरोपी और गवाहों के हस्ताक्षर व लेबल लगाना।

शव मिलने पर UD केस दर्ज कर प्रारंभिक जांच; बाद में FIR से टैग।

हत्या जैसे मामलों में हथियार की बरामदगी पर डॉक्टर से राय कि चोट उसी हथियार से लगी या नहीं।

आग्नेयास्त्र व कारतूस की बरामदगी पर बैलिस्टिक रिपोर्ट अनिवार्य।

घटनास्थल से खून से सने कपड़े, मिट्टी आदि ज़ब्त कर फॉरेंसिक जांच कराना।

जहर, गला घोंटना या डूबने से मौत पर मृतक का विसरा फॉरेंसिक जांच हेतु भेजना।

12-15. अन्य अपराधों की जांच में भी केस की प्रकृति के अनुसार इन्हीं मानकों का पालन।

हाईकोर्ट ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि लापरवाह जांच के चलते अपराधी बच न निकलें। अदालत ने कहा  कि “जांच की खामियों का सीधा फायदा अपराधियों को मिलता है। यह व्यवस्था जनता और न्याय दोनों के साथ अन्याय है।”