'रोम पोप का मधेपुरा गोप का', यादवों के गढ़ में ही हार जाते हैं लालू यादव, जानिए क्यों नहीं जलता राजद का लालटेन

यादव बहुल मधेपुरा में ही लालू यादव की राजद पिछड़ जाती है. लालू जिस यादव जाति का खुद को बड़ा नेता बताते हैं उनको यादव के गढ़ में ही सफलता नहीं मिलना एक झटके की तरह है.

Yadav stronghold Madhepura - फोटो : news4nation

Lalu Yadav : "रोम पोप का, मधेपुरा गोप का" — यह कहावत बिहार की सियासत में मधेपुरा जिले की पहचान को दर्शाने के लिए अक्सर दोहराई जाती है। 'गोप' यानी यादव, जो बिहार में सामाजिक और राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली जाति माने जाते हैं। खासकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को यादव समुदाय का मजबूत नेता और उनका कोर वोटबैंक माना जाता है। लेकिन इसके बावजूद, बिहार के इस 'गोप के गढ़' मधेपुरा में राजद की चुनावी सफलता अक्सर सवालों के घेरे में रही है।


पिछले दो दशकों के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति दिलचस्प है। मधेपुरा जिले में यादवों की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद, राजद यहां जदयू के मुकाबले लगातार पीछे रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जिले की चार सीटों में से दो राजद और दो जदयू के खाते में गईं। यह पिछले पांच विधानसभा चुनावों में राजद का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। इससे पहले 2015 और 2010 में राजद सिर्फ एक-एक सीट पर सिमट गई थी, जबकि जदयू ने तीन-तीन सीटें जीती थीं। 2005 के फरवरी और नवंबर चुनाव में भी जदयू का दबदबा रहा।


2020 में बढ़ा कद

2020 में मधेपुरा सीट से राजद के प्रो. चंद्रशेखर ने जदयू के निखिल मंडल और जाप के पप्पू यादव को हराया था, जबकि सिंगेश्वर से चंद्रहास चौपाल विजयी रहे। दूसरी ओर, आलमनगर से नरेंद्र नारायण यादव और बिहारीगंज से निरंजन मेहता ने जदयू के लिए जीत दर्ज की। परिसीमन के बाद से जदयू इन दोनों सीटों पर अपराजित रही है।


यादव आंदोलन का गढ़ रहा मधेपुरा

मधेपुरा का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है। मंडल आयोग के अध्यक्ष बी.पी. मंडल इसी जिले से थे। मंडल आरक्षण आंदोलन की शुरुआत भी यहीं के मुरहो गांव से 25 अगस्त 1992 को शरद यादव ने की थी, जिसमें वी.पी. सिंह, लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे दिग्गज नेता शामिल थे।


20 फीसदी यादव आबादी 

2023 में हुई जातिगत गणना के अनुसार, बिहार में यादवों की आबादी 14.26% यानी लगभग 1.86 करोड़ है। जिला-स्तरीय आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए हैं, लेकिन अनुमान है कि मधेपुरा में यादवों की हिस्सेदारी 15-20% के बीच है, यानी लगभग 3 से 4.5 लाख। इसके बावजूद, राजद को यहां वह चुनावी समर्थन नहीं मिल पाता, जिसकी उम्मीद की जाती है।