PMCH : महात्मा गांधी की पोती मनु बेन ने भी कराया था पटना पीएमसीएच में उपचार, खुद ऑपरेशन थियेटर में बैठे थे 'बापू', प्राकृतिक चिकित्सा से हुआ मोहभंग का जानिए रोचक किस्सा
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मंगलवार को पीएमसीएच के शताब्दी समारोह में शामिल हुए. इस अस्पताल के स्वर्णिम पन्नों में महात्मा गांधी की पोती का उपचार कराने का रोचक किस्सा भी शामिल है.
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PMCH : पटना का पीएमसीएच अपनी स्थापना के सौ साल पूरा कर चुका है. मंगलवार को पीएमसीएच का शताब्दी समारोह मनाया गया जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई. अपने सौ साल के स्वर्णिम सफर में पीएमसीएच में उपचार कराने वाले लोकप्रिय लोगों की भी एक लम्बी फेहरिस्त है. इसमें महात्मा गांधी की पोती का नाम भी शामिल है. यहां तक कि जब महात्मा गांधी की पोती का यहां उपचार हुआ तो उसके बाद गांधी का एक तरह से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से मोह भी भंग हो गया.
महात्मा गांधी की पोती मनु बेन के उपचार कराने को लेकर एक सोशल मीडिया पोस्ट में पत्रकार और लेखक पुष्य मित्र ने बताया है कि 1947 में मनु बेन यहीं पटना में थीं। गांधी जी यहां नोआखली दंगों की प्रतिक्रिया में हुए दंगों को शांत कराने के लिए आए हुए थे और लगभग तीन महीने यहां AN Sinha institute के आउट हाउस में रहे।
तभी मनु बेन को अपेंडिक्स का दर्द हुआ और उन्हें आनन फानन में PMCH में भर्ती कराया गया। जहां उनकी सर्जरी हुई। इस पोस्ट के साथ जो तस्वीर लगी है वह मनु बेन के अपेंडिक्स की सर्जरी की ही तस्वीर है। फोटो में गांधी जी भी बैठे दिख रहे हैं। गांधी जी ऑपरेशन थिएटर में क्यों बैठे थे, इसकी भी गजब कहानी है। गांधी जी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विरोधी थे और वे अपना और अपने करीबियों का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से ही करते थे। यहां तक कि पटना आने पर एक बीमार बड़े मुस्लिम लीग नेता को भी उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के लिए मना लिया और उनके लिए कलकत्ता से प्राकृतिक चिकित्सक को बुलाया।
ऐसे में जब मनु बेन के पेट में तेज दर्द हुआ तो डॉक्टरों ने कहा कि यह अपेंडिक्स का दर्द है और उनके प्राकृतिक चिकित्सकों ने कहा, यह अपेंडिक्स का दर्द नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सक इस रोग को पहचान नहीं पाए और मनु बेन की हालत बिगड़ने लगी। तब उन्हें सर्जरी के लिए भर्ती कराया गया। गांधी जी यह देखना चाहते थे कि क्या सचमुच उनके प्राकृतिक चिकित्सक गलत साबित हुए इसलिए वे जिद करके सर्जरी रूम में बैठ गए।
बाद में आधुनिक डॉक्टरों की बात सच साबित हुई। वे इस बात से बहुत उदास हुए और कई प्राकृतिक चिकित्सकों को पत्र लिखा और कहा कि अब मैं कैसे किसी को कहूंगा प्राकृतिक चिकित्सकों के भरोसे ही रहना। एक तरह से यह घटना गांधी जी के जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति उनके मोह के टूटने की है और उन्होंने आखिरकार आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के महत्व को स्वीकार किया।