Bihar Congress:कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की अहम बैठक आज, टिकट पर होगा गहन मंथन, सदाकत आश्रम से चुनावी रणभूमि तक सब पर होगी चर्चा

Bihar Congress: 13 और 14 अगस्त को कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकें हो रही हैं. सुबह 11 बजे से शुरू होने वाली इन बैठकों में जिलों के संभावित प्रत्याशियों से न केवल मुलाक़ात होगी...

कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की अहम बैठक आज- फोटो : social Media

Bihar Congress:बिहार की सियासी हवा में चुनावी सुगंध घुल चुकी है और महागठबंधन की सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस, ने भी अपने तरकश के तीर संवारने शुरू कर दिए हैं. 2020 में सत्तर सीटों पर चुनाव लड़कर उन्नीस जीतने वाली कांग्रेस इस बार भी कमर कसकर मैदान में है, और इरादा है सत्तर से कम सीटों पर बात न रुके. सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन के भीतर बातचीत जारी है, मगर कांग्रेस का रुख़ साफ़ है—"हमारी राजनीतिक मौजूदगी और वोट बैंक, दोनों सत्तर से ऊपर की दावेदारी करते हैं."

चुनावी रणनीति की इस बिसात को बिछाने के लिए पार्टी का सदाक़त आश्रम इन दिनों राजनीतिक महामंथन का केंद्र बना हुआ है. 13 और 14 अगस्त को यहां कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकें हो रही हैं. सुबह 11 बजे से शुरू होने वाली इन बैठकों में जिलों के संभावित प्रत्याशियों से न केवल मुलाक़ात होगी, बल्कि उनके राजनीतिक समीकरण, ज़मीनी पकड़ और चुनावी योजनाओं पर भी गहन मंथन होगा.

बैठक की कमान अजय माकन के हाथ में है, जो स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष हैं. उनके साथ सदस्य प्रणीति शिंदे, इमरान प्रतापगढ़ी, और कुणाल चौधरी मौजूद रहेंगे. प्रदेश स्तर पर तालमेल बनाने के लिए बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, विधानमंडल दल के नेता शकील अहमद खान, और तीनों प्रभारी सचिव भी शामिल होंगे.

योजना स्पष्ट है पहले जिलों से आए आवेदकों से राय-मशविरा, फिर स्क्रीनिंग, और अंत में योग्य नामों की लिस्ट पार्टी हाईकमान तक. प्रभारी सचिव सुशील पासी और देवेंद्र यादव पश्चिम चंपारण से लेकर गया तक के 20 जिलों के प्रत्याशियों से सीधे विचार-विमर्श करेंगे इनमें मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, सिवान, नालंदा, पटना, भोजपुर, रोहतास और कैमूर जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़िले शामिल हैं. इसके बाद सभी दावेदार स्क्रीनिंग कमेटी के सामने अपना-अपना दावा पेश करेंगे.

कांग्रेस का यह स्क्रीनिंग अभियान सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है पार्टी संगठन को मज़बूत करने, स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय लेने और उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता लाने का प्रयास. साथ ही, यह विपक्षी महागठबंधन के भीतर अपनी हिस्सेदारी पर दबाव बनाए रखने की चाल भी है.