MVI ने मरे हुए व्यक्ति का बनाया ड्राइविंग लाइसेंस....पैसा के आगे कानून ठेंगे पर...भांड में जाए नीतीश का सुशासन
बिहार के MVI साहेब के लिए पैसा के आगे कुछ नहीं नहीं।कानून को ठेंगे पर रखने में माहिर हैं...हुजूर ने कुछ ऐसा किया कि बदनाम परिवहन विभाग एक बार फिर बदनाम हो गया है। साहेब को दाग अच्छे लगते हैं। अब उनका कारनामा पढ़िए....हैरान रह जाएंगे......
बिहार परिवहन विभाग के कुछ अधिकारी और कर्मचारी ऐसे हैं की पैसा उनके लिए सबकुछ है।पैसा देखते हीं वे इस कदर मदमस्त हो जाता है उसे जिंदा और मुर्दे फर्क तक समझ में नहीं आता। जी हां ऐसा वह जान बूझकर करता है...चुकी ऐसी उसकी आदत है। आदतन भ्रष्ट होने वजह से फिर उसने कुछ ऐसा कर दिया कि नीतीश का सुशासन हीं कटघरे में आ गया है...यह घटना साबित करती है कि बिना कैसे परिवहन विभाग में भौतिक सत्यापन (Physical Verification) और बिना व्यक्ति के उपस्थित हुए, केवल पैसों के लेन-देन के आधार पर सरकारी दस्तावेज बनाए जा रहे हैं।
भ्रष्टाचार के आगे नियम ताक पर
नियमों के अनुसार, ड्राइविंग लाइसेंस के लिए बायोमेट्रिक डेटा और लर्निंग टेस्ट के लिए व्यक्ति का कार्यालय में उपस्थित होना अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में "पैसे के आगे कानून" को ठेंगे पर रख दिया गया। दलालों और भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ ने कागजों पर एक मृत व्यक्ति को जिंदा दिखाकर उसे सड़क पर गाड़ी चलाने का 'अधिकार' दे दिया।
सुशासन के दावों की खुली पोल
नीतीश सरकार के 'सुशासन' और 'जीरो टॉलरेंस' के दावों के बीच यह खबर विभाग की छवि को धूमिल करने वाली है। जब एक मृत व्यक्ति का लाइसेंस बन सकता है, तो अपराधी और असामाजिक तत्व भी आसानी से फर्जी पहचान पत्र हासिल कर सकते हैं। यह न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी एक बड़ा खतरा है।
जांच और कार्रवाई की मांग
इस फर्जीवाड़े के उजागर होने के बाद अब संबंधित विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। आम जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि न केवल उस लाइसेंस को रद्द किया जाए, बल्कि उस लॉग-इन आईडी की पहचान की जाए जिससे यह फाइल पास हुई। दोषी क्लर्क और MVI पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि व्यवस्था में जनता का विश्वास बना रहे।