Patna highcourt - नीतीश सरकार का शराबबंदी कानून कटघरे में हुआ खड़ा, हाईकोर्ट ने कहा कानून में अधिकारियों को मिले मनमाने और बेलगाम अधिकार से जनता पीड़ित
Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने नौ साल पहले बिहार में लागू शराबबंदी कानून को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून में अधिकारियों को मिले मनमाने और बेलगाम अधिकार से जनता पीड़ित है।
Patna -पटना हाईकोर्ट ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 और बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क नियम, 2021 के प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जताया। कोर्ट उन्हें ड्रैकोनियन बताया। कोर्ट ने कहा कि ये अधिकारियों को बिना किसी स्पष्ट दिशा-निर्देश के मनमाने और बेलगाम अधिकार देते हैं, जिससे घरों को जब्त करने का एक परेशान करने वाला चलन शुरू हो गया। एक्टिंग चीफ जस्टिस पीबी बाजनथ्री और जस्टिस एसबी पीडी सिंह की खंडपीठ ने महेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता के घर को इसलिए सील कर दिया गया, क्योंकि उसके परिसर से शराब बरामद हुई, जबकि उसका कहना था कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि केवल कानून में शामिल होने मात्र से किसी व्यक्ति के घर को सील करना, जब्त करना या नीलाम करना मनमाना है।
कोर्ट ने कहा कि कानून में मौजूद धारा 57 बी और नियमों 12 बी, 13 बी और 14, हालांकि राज्य सरकार को दिशानिर्देश जारी करने की शक्ति देते हैं, लेकिन वे अपर्याप्त हैं। कोर्ट ने कहा, किसी विशिष्ट दिशानिर्देश के अभाव में ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग या मनमाने तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
कोर्ट ने कुछ उदाहरण भी दिए, जैसे:
1. यदि किसी किराये के घर से शराब मिलती है, तो क्या मकान मालिक को भी आरोपी बनाया जाएगा?
2. यदि किसी संयुक्त परिवार का एक सदस्य बाकी सदस्यों की जानकारी के बिना शराब रखता है तो क्या पूरे घर को सील कर दिया जाएगा?
3. यदि सरकारी क्वार्टर से शराब बरामद होती है तो क्या सरकार उसे जब्त करके नीलाम कर देगी?
कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई कि जब्त की गई शराब की मात्रा और लगाए गए जुर्माने के बीच कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नियम में न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपये है, भले ही 100 मिलीलीटर या 1,00,000 लीटर शराब बरामद हो। यह प्रावधान 'असंगत' है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून और नियमों को इस तरह से लागू करना उन्हें मनमाना बना देता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(6) की भावना के खिलाफ है।
हालांकि, कोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों पर और टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे सीधे तौर पर विवादित नहीं थे। अपने निर्णय में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि किसी मकान मालिक को उसकी जानकारी या मंशा के बिना उसके परिसर से बरामद हुई किसी भी तरह की मादक सामग्री के लिए परेशान नहीं किया जा सकता।
इसके परिणामस्वरूप, कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ता के घर को तत्काल प्रभाव से खोलने का निर्देश दिया। इसी के साथ रिट याचिका को स्वीकार कर लिया गया।