वसीयत विवाद पर पटना हाई कोर्ट का लैंडमार्क फैसला, अनिश्चित काल तक नहीं दी जा सकती प्रोबेट को चुनौती, रद्द कराने के लिए मिलेगा सीमित समय

पटना HC का बड़ा फैसला: प्रोबेट निरस्त कराने के लिए 3 साल की समय-सीमा तय, अनुच्छेद 137 की व्याख्या से वसीयत विवादों में कानूनी स्थिति हुई साफ

Patna - पटना हाई कोर्ट के जस्टिस चौधरी और जस्टिस डॉ. अंशुमान की खंडपीठ ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वसीयत प्रमाण पत्र (प्रोबेट) और प्रशासन पत्र (Letter of Administration) से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 की अनुच्छेद 137 न केवल प्रोबेट जारी करने की याचिकाओं पर, बल्कि उनके निरस्तीकरण (Revocation) की याचिकाओं पर भी समान रूप से लागू होगी. 

प्रोबेट प्राप्त करना एक 'निरंतर अधिकार'

अदालत ने अपने विस्तृत निर्णय में प्रोबेट प्राप्त करने की प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी भेद रेखांकित किया. कोर्ट के अनुसार, प्रोबेट या लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन प्राप्त करना एक निरंतर अधिकार (Continuous Right) है, जिसे वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद किसी भी समय प्रयोग में लाया जा सकता है. हालांकि, मृत्यु के तीन वर्ष से अधिक समय बाद दायर की गई याचिका संदेह उत्पन्न करती है और ऐसे विलंब के लिए याचिकाकर्ता को अदालत के समक्ष समुचित एवं संतोषजनक स्पष्टीकरण देना अनिवार्य होगा. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि केवल देरी के आधार पर ऐसी याचिका स्वतः खारिज नहीं की जा सकती. 

निरस्तीकरण (Revocation) के लिए 3 साल की डेडलाइन

प्रोबेट या प्रशासन पत्र को निरस्त कराने से जुड़ी याचिकाओं पर खंडपीठ ने कड़ा रुख अपनाया है. कोर्ट ने व्यवस्था दी कि निरस्तीकरण की याचिकाओं पर तीन वर्ष की सख्त समय-सीमा लागू होगी. इस समय-सीमा की गणना उस तिथि से की जाएगी जिस दिन प्रोबेट का अनुदान (Grant) किया गया था. निर्धारित अवधि बीत जाने के बाद दायर की गई निरस्तीकरण याचिका को समय-सीमा से बाधित माना जाएगा. 

प्रोबेट का वैश्विक प्रभाव: 'जजमेंट इन रेम'

समय-सीमा की इस अनिवार्यता के पीछे कोर्ट ने प्रोबेट के कानूनी प्रभाव को आधार बनाया. खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि प्रोबेट 'जजमेंट इन रेम' होता है, जिसका अर्थ है कि यह आदेश केवल संबंधित पक्षों पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व पर प्रभावी होता है. इसी वैश्विक प्रभाव के कारण इसे चुनौती देने की अवधि को सीमित रखना आवश्यक है, ताकि कानूनी अनिश्चितता की स्थिति पैदा न हो. 

गुण-दोष के आधार पर होगी अगली सुनवाई

इस महत्वपूर्ण मामले में अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता विश्वजीत कुमार मिश्रा ने पक्ष रखा, जबकि प्रतिवादियों की ओर से वरीय अधिवक्ता शशि शेखर द्विवेदी और अधिवक्ता पार्थ गौरव ने दलीलें पेश कीं. खंडपीठ द्वारा कानून की व्याख्या स्पष्ट किए जाने के बाद, अब संबंधित प्रथम अपीलों को गुण-दोष (Merits) के आधार पर सुनवाई के लिए उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।