Patna Mayor:पटना नगर निगम में सियासी भूचाल! महापौर सीता साहू पर गाज, अधिकार छिनने की तैयारी
महापौर सीता साहू को नगर विकास विभाग ने कारण बताओ नोटिस थमा दिया है। नोटिस साफ कहता है कि 7 दिन के अंदर जवाब दो, वरना कुर्सी से हाथ धोने के लिए तैयार रहो!
Patna Mayor: पटना नगर निगम की राजनीति में इस वक्त ज़बरदस्त उथल-पुथल मची हुई है। महापौर सीता साहू को नगर विकास विभाग ने कारण बताओ नोटिस थमा दिया है। नोटिस साफ कहता है कि 7 दिन के अंदर जवाब दो, वरना कुर्सी से हाथ धोने के लिए तैयार रहो! बात सिर्फ़ नोटिस तक सीमित नहीं है। अगर महापौर का जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो बिहार नगर पालिका अधिनियम 2007 की धारा 68(2) के तहत राज्य सरकार उनके अधिकार और शक्तियाँ छीन सकती है। यानि महापौर नाम के रहेंगे, लेकिन सत्ता किसी और के हाथों में होगी। आमतौर पर ये दायित्व उपमहापौर को सौंपा जाता है।जांच रिपोर्ट महापौर के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर रही है। उन पर आरोप है कि उन्होंने विभागीय आदेशों की खुलकर अवहेलना की और नियम विरुद्ध कामों को अंजाम दिया। मामला इतना गंभीर है कि नगर आयुक्त अनिमेष पराशर ने खुद विभाग को पत्र लिखकर शिकायत की थी। इसके बाद विभाग ने दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित की।
केवल अफ़सर ही नहीं, बल्कि निगम के कई पार्षद विनय कुमार पप्पू, गीता देवी, डॉ. आशीष सिन्हा और डॉ. इंद्रदीप चंद्रवंशी तक ने महापौर पर गंभीर आरोप लगाए। पार्षदों का कहना है कि महापौर लगातार नियम तोड़ रही हैं और निगम की कार्यप्रणाली को मनमानी से चला रही हैं।
सबसे बड़ा विवाद उठा प्रस्ताव संख्या 123, 124 और 125 को लेकर। आरोप है कि विभागीय रोक के बावजूद, 11 जुलाई को महापौर ने इन प्रस्तावों को दुबारा लाने और पारित कराने की कोशिश की। इसे विभाग ने सीधा-सीधा "अवैध और आदेश की अवहेलना" करार दिया।
प्रस्तावों का विवाद:
123: निगम की किसी भी योजना पर पहले सशक्त स्थायी समिति और निगम बोर्ड की स्वीकृति अनिवार्य हो।
124: एमेजिंग इंडिया समेत कोई भी निर्णय बोर्ड और समिति की अनुमति के बिना रद्द न हो।
125: निगम के अधिवक्ता प्रसून सिन्हा को हटाकर नए पैनल का गठन।
विभाग का कहना है कि न सिर्फ़ रोक के बावजूद प्रस्ताव लाए गए, बल्कि बोर्ड और सशक्त स्थायी समिति की बैठकें भी नियमित रूप से नहीं बुलाई गईं। यहाँ तक कि 11 फरवरी को 8वीं बैठक की आंशिक संचिका बिना कार्यालय की जानकारी के खोल ली गई, जो गंभीर संदेह पैदा करता है।
अब सवाल ये है कि क्या सीता साहू अपनी कुर्सी बचा पाएंगी, या फिर राज्य सरकार उनके अधिकार छीनकर किसी और को "नगर निगम की चाबी" सौंप देगी। पटना की राजनीति में ये मामला इस वक्त सबसे बड़ा पावर गेम बन चुका है