राजीव प्रताप रूडी का बिहार भाजपा में बढ़ेगा कद! 'मोदी-शाह के उम्मीदवार' को हराकर अब दिखाएंगे राजपूती ताकत ?

रूडी ने 'बॉस' को दिखा दिया कि 'बॉस हमेशा सही नहीं होते हैं.' कांस्टीट्यूशनल क्लब चुनाव में रूडी 102 वोट से जीत गए. रूडी को 392 वोट मिले जबकि मोदी-शाह समर्थित उनके प्रतिद्वंदी संजीव बालियान को 290 वोट हासिल हुए.

Rajiv Pratap Rudy- फोटो : news4nation

Rajiv Pratap Rudy:  सितंबर 2017 में जब राजीव प्रताप रूडी ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया था तब उनका एक बयान सुर्खियां बना था. उन्होंने कहा था, 'मेरे बॉस को लगता है कि मैं फेल हुआ हूं, बॉस हमेशा सही होते हैं'. 'मैं बॉस को अपने अच्छे कार्यो को बताने में नाकाम रहा.' 'बॉस' यानी पीएम मोदी. वही राजीव प्रताप रूडी इस बार पास हुए हैं, वह भी 'बॉस' के उम्मीदवार को चुनाव हराकर. कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव रूडी ने भाजपा सांसद संजीव बालियान को शिकस्त दी. संजीव बालियान को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का समर्थित उम्मीदवार माना गया, वहीं रूडी ने बागी तेवर दिखाते हुए कॉन्स्टिट्यूशन क्लब पर लगभग ढाई दशक का अपना दबदबा बरकरार रखा. 


रूडी ने इस बार बॉस को दिखा दिया कि 'बॉस हमेशा सही नहीं होते हैं.' कांस्टीट्यूशनल क्लब चुनाव में रूडी 102 वोट से जीत गए. रूडी को कुल 392 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंदी संजीव बालियान को 290 वोट हासिल हुए. बॉस समर्थित संजीव बालियान को हराकर न सिर्फ राजीव प्रताप रूडी सीधे मोदी-शाह की जोड़ी के खिलाफ भाजपा में एक बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले यह रूडी का कद बढने का भी संकेत है.  


बिहार बनाम गुजरात की लड़ाई

कांस्टीट्यूशनल क्लब चुनाव जीतने के लिए इसे बिहार बनाम गुजरात की लड़ाई के तौर पर भी पेश किया गया. जहां भाजपा के एक धड़े ने मोदी-शाह के प्रति अपनी नाखुशी का बदला लेने के लिए रूडी का पक्ष लिया, वहीं बिहार के सांसदों और पूर्व सांसदों में अधिकांश के बारे में माना जा रहा है कि उन्होंने रूडी को जिताना बिहार की अस्मिता से जोड़कर देखा. इसका अंदाजा इसी ले लगा सकते हैं कि बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पिता शकुनि चौधरी सहित जहानाबाद के सांसद रहे अरुण कुमार, पाटलिपुत्र के सांसद रहे रामकृपाल यादव सरीखे नेताओं ने खास तौर पर दिल्ली आकर वोट डाला. इतना ही नहीं राजद, कांग्रेस और वामदलों के कई नेता भी रूडी को बिहार के नाम पर समर्थन करते दिखे. अंततः इस लड़ाई में गुजरात लॉबी की हार हुई और बिहार के लाल रूडी की जीत हुई. 


बिहार चुनाव पर असर

राजीव प्रताप रूडी को लेकर पिछले कई वर्षों से माना जाता है कि वे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज हैं. जब 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनी तब रूडी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली. बाद में वे नवंबर 2014 में मंत्री बनाए गए लेकिन सितंबर 2017 में उन्हें बड़े बेमन से पद छोड़ना पड़ा था. उसके बाद कई मौकों पर यह देखा गया कि रूडी को पार्टी या सरकार में कोई बड़ा पद नहीं मिला. यहां तक कि इससे एक संदेश यह भी गया कि रूडी को किनारे लगाने के कारण राजपूत वर्ग नाराज है. वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में मगध और शाहाबाद में आरा, बक्सर, औरंगाबाद, काराकाट, जहानाबाद और पाटलिपुत्र में एनडीए को मिली हार के पीछे राजपूत वोटरों की नाराजगी एक प्रमुख कारण के तौर पर देखा गया. 


राजपूती ताकत दिखाने का मौका !

कांस्टीट्यूशनल क्लब चुनाव में मोदी-शाह के उम्मीदवार को मात देने के बाद अब बिहार विधानसभा चुनाव में रूडी के पास बड़ा मौका माना जा रहा है. वे मौजूदा समय में राजपूत वर्ग के एक प्रभावी नेता माने जाते है. खासकर भाजपा के लिए राजपूतों को गोलबंद करने में वे अहम भूमिका निभा सकते हैं. वहीं अगर पार्टी ने उन्हें दरकिनार किया तो इससे राजपूतों में फिर से गलत संदेश जा सकता है जिसका बड़ा खामियाजा एनडीए को लोकसभा चुनाव की तरह उठाना पड़ सकता है. 


कौन हैं राजीव प्रताप रूडी 

मात्र 26 वर्ष में विधायक बने रूडी देश में सबसे कम उम्र में MLA बनने वालों में शामिल हैं. वे  1996 में पहली बार छपरा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे नागरिक उड्डयन मंत्री बने. वहीं नरेंद्र मोदी नरेंद्र में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री बने. उन्होंने लालू यादव परिवार को सारण संसदीय सीट पर करारी हार दी है जिसमें राबड़ी देवी और उनकी बेटी रोहिणी आचार्य का नाम भी शामिल रहा है.