ये रिश्ता क्या कहलाता है ! कभी नीतीश ने कहा था...मिट्टी में मिल जाऊंगा...बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा...अब दसवीं बार बीजेपी के साथ ले रहे सीएम पद की शपथ

Bihar Politics : कभी नीतीश कुमार का उनकी पार्टी ने ही सीएम बनने का विरोध किया था. अब दसवीं बार सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं.......पढ़िए आगे

ऐसे बने सीएम नीतीश - फोटो : SOCIAL MEDIA

PATNA : नीतीश कुमार 15 साल सांसद और 21 साल तक विधायक रह चुके है। उनका लम्बा राजनीतिक सफ़र है। करीब 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं। अब दसवी बार सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। लेकिन कभी वह भी दौर था, जब नीतीश कुमार को ही दल में बिहार के नेतृत्व को लेकर मतभेद था।  

सीएम फेस की जरुरत

बिहार की राजनीति में 2005 का साल उथल-पुथल भरा रहा। फरवरी के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत न मिलने के कारण राज्य में गहरी राजनीतिक अस्थिरता छा गई थी। इस गतिरोध को खत्म करने के लिए अक्टूबर में जब दोबारा चुनाव की घोषणा हुई, तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने फैसला किया कि जीत के लिए एक स्पष्ट और निर्विवाद नेतृत्व आवश्यक है। हालांकि, गठबंधन के भीतर मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भारी असमंजस और आंतरिक खींचतान छिड़ गई।

भाजपा और जदयू के बीच नेतृत्व पर मतभेद

NDA में शामिल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद थे। लेकिन, उस समय समता पार्टी के साथ गठबंधन में रहे नीतीश कुमार की अपनी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ खेमे में यह राय सर्वसम्मति से स्वीकार्य नहीं थी। गठबंधन को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जिस पर सभी की सहमति हो, मगर अंदरूनी तौर पर मतैक्य (Consensus) बन पाना संभव नहीं हो पा रहा था।

मुजफ्फरपुर में आडवाणी ने किया अप्रत्याशित ऐलान

इसी अनिश्चितता और अंदरूनी गतिरोध के बीच, भाजपा के तत्कालीन कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक बड़ा राजनीतिक 'मास्टरस्ट्रोक' खेला। उन्होंने मुजफ्फरपुर में आयोजित एक जनसभा में अचानक घोषणा कर दी कि आगामी अक्टूबर चुनाव के लिए नीतीश कुमार ही NDA की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। भाजपा ने जहाँ इस फैसले को तत्काल स्वीकार कर लिया, वहीं सहयोगी दल जदयू में यह घोषणा तीखी प्रतिक्रिया का कारण बनी।

जॉर्ज फर्नांडीस और दिग्विजय सिंह का कड़ा विरोध

आडवाणी के इस एकतरफा फैसले पर जदयू के दो सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली नेताओं ने खुलकर नाराजगी जाहिर की। पार्टी के संस्थापक सदस्य जॉर्ज फर्नांडीस ने सार्वजनिक रूप से आपत्ति जताई कि इतना महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले उनसे कोई चर्चा नहीं की गई। इसके अलावा, बांका के तत्कालीन सांसद दिग्विजय सिंह ने भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाने के विचार का सख्त विरोध किया।

आंतरिक कलह के बावजूद नीतीश बने CM चेहरा

वरिष्ठ नेताओं के कड़े विरोध और गठबंधन के भीतर फैले आंतरिक असंतोष के बावजूद, लालकृष्ण आडवाणी का फैसला अंतिम साबित हुआ। यह स्पष्ट था कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाना एक चुनौतीपूर्ण राजनीतिक निर्णय था, जिसे जदयू के भीतर सर्वसम्मति से लागू कराना मुश्किल था। यह घटनाक्रम 2005 के चुनावों से पहले NDA की अंदरूनी खींचतान को उजागर करता है, जहाँ शीर्ष नेतृत्व ने बाध्यकारी फैसला लेकर बिहार की राजनीतिक दिशा को मोड़ दिया।