Bihar Govindpur massacre: गोह विधानसभा के सागरपुर की मिट्टी में दर्ज है लोकतंत्र की कीमत! 48 साल बाद भी जिंदा है शहादत की कहानी
Bihar Govindpur massacre: बिहार की गोह विधानसभा सीट पर 11 नवंबर को मतदान होगा। 48 साल पहले इसी सागरपुर बूथ पर देश की सबसे बड़ी चुनावी हिंसा में आठ ग्रामीण शहीद हुए थे। आज भी उनकी शहादत लोकतंत्र की चेतना को जीवित रखे हुए है।
Bihar Govindpur massacre: बिहार की गोह विधानसभा सीट पर 11 नवंबर 2025 को मतदान होना है।चुनावी शोर थम चुका है, लेकिन औरंगाबाद जिले के सागरपुर गांव की हवा आज भी 48 साल पुरानी गोली और बारूद की गंध महसूस कर रही है। यह वही सागरपुर है, जहां 10 जून 1977 को बमों की गड़गड़ाहट और गोलियों की तड़तड़ाहट में आठ निर्दोष ग्रामीणों ने अपने मताधिकार की रक्षा करते हुए प्राण गंवाए थे। 56 लोग घायल हुए थे। यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी चुनावी हिंसा मानी जाती है। एक ऐसी त्रासदी जिसे न चुनाव आयोग ने दर्ज किया, न सरकार ने शहीदों को सम्मान दिया।
1977 की खूनी सुबह जब वोट की रक्षा में बहा खून
वो समय था जब आपातकाल के बाद देश में पहली बार आम चुनाव हो रहे थे।लोकतंत्र की नई सुबह का उत्साह हर गांव, हर बूथ पर देखा जा सकता था, लेकिन उसी सुबह सागरपुर के मतदान केंद्र पर लोकतंत्र के दुश्मनों ने बम और गोलियों से हमला कर दिया। गोविंदपुर, अजान, सुजान और नेयामतपुर गांवों के सैकड़ों ग्रामीण लाठियां लेकर बूथ की ओर बढ़ रहे थे, ताकि वोट डाल सकें। तभी स्थानीय सामंती समूह ने बूथ कैप्चरिंग की कोशिश की — लेकिन ग्रामीण पीछे नहीं हटे। उन्होंने लाठियों और पत्थरों से मुकाबला किया, और गोलियों की बौछार में आठ युवक शहीद हो गए। शहीदों में सभी यादव समुदाय के थे — चार गोविंदपुर गांव के, बाकी पास के गांवों से।उनकी शहादत के बावजूद बूथ पर मतदान रुका नहीं। वोटिंग जारी रही — क्योंकि ग्रामीणों ने कहा कि खून बह गया, पर लोकतंत्र नहीं झुकेगा। यह घटना बिहार की चुनावी राजनीति में बूथ कैप्चरिंग की पहली दर्ज मिसाल बनी। वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने अपनी किताब “बिहार में चुनावी जाति हिंसा और बूथ लूट” में लिखा कि सागरपुर भारत की पहली संगठित बूथ कैप्चरिंग और लोकतांत्रिक प्रतिरोध की घटना थी।”
इतनी बड़ी हिंसा के बावजूद बूथ रद्द नहीं हुआ
इस घटना के चश्मदीद राजनंदन यादव आज भी जीवित हैं। उनकी आंखें नम हो जाती हैं जब वे बताते हैं कि मैं भी गोली से घायल हुआ था, लेकिन मतदान नहीं रुका। लोग मर रहे थे, फिर भी कतार में खड़े थे। ऐसा जोश शायद फिर कभी नहीं दिखेगा। आज 48 साल बाद भी सागरपुर बूथ वीरान है। ग्रामीण अब पास के सुजान गांव में वोट डालते हैं। यह इलाका लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहा और यहां मतदान प्रतिशत आज भी औसत से कम रहता है।
47 साल बाद बना मताधिकार स्मारक
2025 में यानी घटना के 47 साल बाद, गोविंदपुर गांव में “मताधिकार स्मारक” का निर्माण किया गया।इस स्मारक को बनाने वाले हैं श्याम सुंदर यादव, जो कभी पत्रकार रहे और अब जिला पार्षद प्रतिनिधि हैं।उन्होंने अपने निजी कोष से इस भव्य स्मारक का निर्माण कराया, और 16 जून 2025 को इसका अनावरण दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव ने किया। डॉ. यादव ने कहा किसागरपुर की शहादत हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, जिसे कभी-कभी खून से भी सींचना पड़ता है।”
वोट जरूर देना है— शहीद परिवारों की अपील
आज भी गांव की लालकल्या देवी जिंदा हैं। जब उनके पति और देवर गोली से मारे गए, तब उनकी गोद में सिर्फ एक दिन का शिशु था।अब वह हर चुनाव में एक ही बात कहती हैं कि बेटा, वोट जरूर देना। उसी के लिए तो हमारे लोग मरे थे। रामनारायण यादव, जो उस दिन घायल हुए थे, कहते हैं कि आज भी हम इंतजार करते हैं कि चुनाव आयोग उन शहीदों को मरणोपरांत सम्मान दे। ताकि हमारी अगली पीढ़ी गर्व से कह सके — हमारे पुरखों ने लोकतंत्र की रक्षा की थी।”
शहादत की विरासत पर परीक्षा
इस बार गोह विधानसभा में जब मतदाता 11 नवंबर को वोट डालने बूथ जाएंगे,तो वे सिर्फ सरकार चुनने नहीं, बल्कि शहीदों की विरासत निभाने भी जा रहे होंगे।गांववालों ने तय किया है कि मतदान के बाद गोविंदपुर स्मारक पर दीप जलाकर सागरपुर के शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे। गांव के बुजुर्ग बिजेंद्र यादव कहते हैं कि हमारे पुरखों ने लोकतंत्र के लिए खून दिया। अब हमारी बारी है उसे ज़िंदा रखने की।सुबह 7 बजे से मतदान शुरू होगा और शाम 6 बजे तक चलेगा।14 नवंबर को नतीजे आएंगे, लेकिन सागरपुर के आठ शहीद तब भी गवाही देंगे कि भारत का लोकतंत्र अब भी जिंदा है।