महिलाओं के मासिक धर्म और स्त्री रोग की समस्याओं को लेकर दिशा निर्देश हो जारी, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने दायर की याचिका

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने महिलाओं के मासिक धर्म और स्त्री रोग की समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस बारे में सरकार दिशा निर्देश जारी करे।

New Delhi - सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने महिलाओं के मासिक धर्म और स्त्री रोग की समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस बारे में सरकार दिशा निर्देश जारी करे। एसोसिएशन के कहना है कि कार्यस्थल और शैक्षणिक संस्थानों में मासिक धर्म और संबंधित स्त्री रोग संबंधी समस्याओं के दौरान महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, सम्मान, शारीरिक स्वायत्तता और गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन न हो। इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने के कारण उन्हें असहज समस्याओं से जूझना पड़ता हैं।

इस याचिका में कहा गया है कि हरियाणा के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में महिला कर्मचारियों पर अपमानजनक जाँच करने की कोशिश की गई हैं कि वे मासिक धर्म से गुज़र रही हैं या नहीं। एसोसिएशन ने केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को इस घटना की विस्तृत जाँच करने का निर्देश देने की माँग कोर्ट से की गई है।

एससीबीए ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि यह सुनिश्चित किया जाये कि कार्यस्थल और शैक्षणिक संस्थानों में मासिक धर्म और स्त्री रोग संबंधी समस्याओं के दौरान महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, सम्मान, शारीरिक स्वायत्तता और गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं हो सकें।

इस याचिका में ये प्रश्न उठाया गया है कि गत 26 अक्टूबर को हरियाणा के राज्यपाल के दौरे के कारण तीन सफाई कर्मचारियों को रविवार को ड्यूटी पर बुलाया गया। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को कर्मचारियों की ओर से लिखित शिकायत  दर्ज कराई गई है, जिसमें कहा गया है कि उनके पर्यवेक्षकों ने उन्हें मासिक धर्म होने और अस्वस्थ महसूस करने के बावजूद तेज़ी से काम करने का निर्देश दिया गया।

उनसे यह भी प्रमाण मांगा गया कि कार्यरत महिलाएँ मासिक धर्म से गुज़र रही थीं।यह सबसे अधिक परेशान करने वाली बात है कि पर्यवेक्षकों ने कर्मचारियों से उनके सैनिटरी पैड की तस्वीरें भेजने के लिए कहकर उनसे फोटोग्राफिक सबूत मांगे गये।  यही नहीं, उनके साथ मौखिक रूप से दुर्व्यवहार और अपमानित किया गया। एसोसिएशन के मानना है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, महिलाओं और लड़कियों की गरिमा, निजता और शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ी ऐसी घटनाएँ कई संस्थानों में हुई हैं। 

एक हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसके अनुसार मासिक धर्म की जाँच के लिए लड़कियों के कपड़े उतरवाए गए।महाराष्ट्र के एक निजी स्कूल में कक्षा 5 से 10 तक पढ़ने वाली लड़कियों को स्कूल के कन्वेंशन हॉल में बुलाया गया और प्रोजेक्टर के ज़रिए शौचालयों और फर्श पर खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाई गईं। 

फिर छात्राओं को शौचालय में बुलाकर यह जाँच की गई कि उन्हें मासिक धर्म हो रहा है या नहीं।महिलाओं और लड़कियों को विभिन्न संस्थागत व्यवस्थाओं में आक्रामक और अपमानजनक जांच से गुजरना पड़ रहा है।