Supreme Court News : बलात्कार के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट ने महिला को लगाई फटकार, कहा-उसके बुलाने पर होटल क्यों जाती थी...

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे संवेदनशील मामले में निर्णय सुनाया है, जो विवाह, संबंधों और न्याय की सीमाओं को रेखांकित करता है।

N4N DESK : भारतीय न्यायपालिका ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून की चौखट पर केवल आरोप नहीं, प्रमाण और नैतिकता भी तौलती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे संवेदनशील मामले में निर्णय सुनाया है, जो विवाह, संबंधों और न्याय की सीमाओं को रेखांकित करता है। एक विवाहित महिला द्वारा अपने पुरुष मित्र पर "शादी का झूठा वादा कर शारीरिक शोषण" का आरोप लगाया गया था, किंतु जब न्याय की दरबार में सच्चाई के परख की घड़ी आई, तो सारा परिदृश्य पलट गया।

जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने न केवल आरोपी की अग्रिम जमानत को बरकरार रखा, बल्कि याचिका दाखिल करने वाली महिला को तीखी फटकार भी लगाई। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि विवाहित होते हुए भी किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाना, स्वयं एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। शीर्ष अदालत ने चेताया कि ऐसे कृत्य के लिए महिला पर भी विधि सम्मत कार्रवाई संभव है।

मामला 2016 में सोशल मीडिया से उपजा, जब महिला और आरोपी के बीच मित्रता रिश्ते में बदल गई। महिला का आरोप था कि पुरुष ने विवाह का आश्वासन देकर उससे संबंध बनाए, और इसी के प्रभाव में आकर उसने अपने पति से तलाक लिया। किंतु तलाक के बाद जब महिला ने विवाह का प्रस्ताव रखा, तो पुरुष ने इंकार कर दिया, जिससे आहत होकर महिला ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया।

हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इस संबंध में पहले ही यह माना था कि तलाक के उपरांत दोनों के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं रहे, और इस आधार पर आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही रुख अपनाते हुए कहा कि महिला पर यह भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने कृत्य की नैतिक और विधिक पड़ताल करे। यह निर्णय न केवल न्याय की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि कानून अंधा नहीं है—वह हर स्थिति में सम्यक विवेक और संतुलन से काम करता है। संबंधों की गरिमा को बनाए रखना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है—चाहे वह पुरुष हो या महिला।