भगवान विष्णु की आरती
पूजा में जो गलती रह जाती है, आरती कर देने भर से त्रुटि का परिमार्जन हो जाता है। भगवान विष्णु की आरती
Lord Vishnu: आरती को 'आरात्रिक' और 'नीराजन' भी कहते हैं। पूजाके अन्तमें आरती की जाती है। पूजा में जो गलती रह जाती है, आरती कर देने भर से त्रुटि का परिमार्जन हो जाता है। स्कन्दपुराण के अनुसार -मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः। सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥अर्थात 'पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होनेपर भी नीराजन (आरती) कर लेनेसे उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ॐ जय जगदीश हरे।