Religion: राम ही तत्व, राम ही तत्त्वज्ञान, सांसारिक झरने में स्नान करती एक आत्मिक गाथा
राम चेतना, भाव, ज्ञान, भक्ति और प्रेम के प्रतीक हैं। वे भोर की रोशनी से लेकर रात्रि के स्वप्न तक, कर्म से लेकर परमार्थ तक, भोग से लेकर त्याग तक—हर अनुभव में समाहित हैं। पढ़िए कौशलेंद्र प्रियदर्शी के शब्दों में राम ही विज्ञान हैं, राम ही मोक्ष, जीवन
"राम उठत, राम चलत, राम शाम – भोर हैं।"
ये कोई साधारण पंक्तियाँ नहीं, बल्कि चेतना के उस अविरल प्रवाह का साक्षात्कार हैं, जहाँ राम केवल एक नाम नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन-दर्शन बन जाते हैं। प्रातः की पहली किरण राममय है, और संध्या का अंतिम स्पंदन भी राम में ही लयबद्ध होता है। राम बुद्धि में हैं, चित्त में हैं, और मन की गहराइयों में विभोर कर देने वाले आलोक बनकर विद्यमान हैं। वे केवल भगवान नहीं, बल्कि प्रत्येक कला में, प्रत्येक ऋतु में, मास-अयन में समाहित विराट सत्व हैं।
"राम शब्द, राम अर्थ, राम ही पुरुषार्थ हैं।
राम कर्म, राम भाग्य, राम ही परमार्थ हैं।।"
जब जीवन की व्याख्या की जाती है, तब भाषा में राम आते हैं; जब अर्थ की खोज होती है, तो भी राम में ही निष्पत्ति होती है। वे कर्म के स्फुरण हैं, भाग्य की रेखा हैं और परमार्थ की अंतिम यात्रा भी वही हैं। राम केवल प्रेम नहीं, वे स्नेह का स्पर्श हैं, राग की स्वर-लहरियाँ हैं और अनुराग की अंतिम पूर्णता भी हैं।
"राम भोग, राम त्याग, राम तत्वज्ञान हैं।
राम भक्ति, राम प्रेम, राम ही विज्ञान हैं।।"
वे भोग में रस हैं, त्याग में शक्ति। उनकी भक्ति विज्ञान से परे जाकर भी विज्ञान बन जाती है। बहरहाल जब जीवन स्वर्ग और मोक्ष की आकांक्षा करता है, तो उसे भी राम में ही साध्य और आराध्य दोनों दृष्टिगोचर होते हैं। राम न केवल जीवन का आधार हैं, वे जीवन का लक्ष्य भी हैं।
राम में ही संसार है, और राम के बिना संसार केवल भ्रम।
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....