Religion: आज से खरमास आरंभ, मांगलिक कार्यों पर लगा विराम, इस दौरान क्या करें और क्या न करें, जानें जरूरी नियम
Religion: आज से कालचक्र का वह अध्याय आरंभ हो रहा है, जब आस्था, संयम और साधना को प्राथमिकता दी जाती है। सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही आज दोपहर 01:24 बजे से खरमास की शुरुआत हो जाएगा।
Religion: आज से कालचक्र का वह अध्याय आरंभ हो रहा है, जब आस्था, संयम और साधना को प्राथमिकता दी जाती है। सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही आज दोपहर 01:24 बजे से खरमास की शुरुआत हो जाएगा। शास्त्रों और पंचांगों के मुताबिक, खरमास लगते ही हिंदू धर्म में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे सभी शुभ-मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। यह विराम केवल परंपरा नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन और ग्रहों की मर्यादा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
इस बार खरमास का असर और भी गहरा है, क्योंकि आठ वर्षों बाद शुक्र ग्रह के अस्त होने से विवाह-ब्याह और अन्य शुभ कर्म सीधे डेढ़ महीने बाद ही संभव हो पाएंगे। मकर संक्रांति पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश, यानी 14 जनवरी 2026 की रात्रि 09:19 बजे खरमास समाप्त होगा, लेकिन शुक्र के कारण पूर्ण रूप से शुभ कार्य तब भी आरंभ नहीं होंगे।
हालांकि आस्था के आंगन में एक उजली किरण जरूर है। बसंत पंचमी, 23 जनवरी 2026 को अबूझ मुहूर्त रहेगा। इस दिन सगाई, व्यापार आरंभ, विद्या-अध्ययन की शुरुआत और विशेष वस्तुओं की खरीदारी की जा सकती है। यही एक दिन ऐसा है, जब काल और ग्रहों की बंदिशें शिथिल पड़ जाती हैं।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार सूर्य को संक्रांति और लग्न का राजा कहा गया है। जब सूर्य गुरु की राशि धनु में प्रवेश करते हैं, तो गुरु निस्तेज हो जाते हैं और यही स्थिति खरमास की द्योतक बनती है। इस अवधि में हेमंत ऋतु प्रभावी रहती है, दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं। धुंध, बादल, शीत, वर्षा और कहीं-कहीं बर्फबारी भी इसी कालखंड की निशानी है।
खरमास को निषेध का नहीं, बल्कि साधना का मास माना गया है। इस दौरान दान-पुण्य, भागवत कथा, रामायण पाठ, मंत्र-जाप, ग्रंथों का अध्ययन और प्रसूति स्नान विशेष फलदायी होते हैं। यह समय दुनिया की भागदौड़ से हटकर रूहानी सुकून, इबादत और आत्मचिंतन का पैग़ाम देता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्यदेव के रथ में घोड़ों के स्थान पर एक मास के लिए गधे जोते जाने से रथ की गति मंद पड़ जाती है, इसी से खरमास नाम प्रचलित हुआ। वर्ष में दो बार धनु और मीन मास में यह काल आता है, जो हमें याद दिलाता है कि हर गति के बीच ठहराव भी ज़रूरी है।