Bihar Education:बीएड के बिना भी बन सकते हैं सरकारी टीचर, ये कोर्स करके भी बन सकते हैं शिक्षक, बदले नियम से लाखों बेरोजगार युवाओं को मिलेगी राहत

Bihar Education: अब बीएड के बग़ैर भी सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने के रास्ते खुले हैं, जो नौजवानों के लिए नई उम्मीद और नई रोशनी लेकर आए हैं।...

बीएड के बिना भी बन सकते हैं सरकारी टीचर- फोटो : social Media

Bihar Education: सरकारी शिक्षक बनना आज भी लाखों नौजवानों का ख़्वाब है। शिक्षक के पेशे को समाज में इज़्ज़त की नजर से देखा जाता  है। आम तौर पर यह तसव्वुर रहा है कि सरकारी स्कूल में शिक्षक बनने के लिए बीएड करना ही लाज़िमी है, लेकिन वक़्त के साथ शिक्षा व्यवस्था में ऐसे कई बदलाव आए हैं जिन्होंने इस सोच को नया विस्तार दिया है। अब बीएड के बग़ैर भी सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने के रास्ते खुले हैं, जो नौजवानों के लिए नई उम्मीद और नई रोशनी लेकर आए हैं।

सबसे अहम विकल्प है डी.एल.एड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन), जिसे कई रियासतों में बीटीसी या जेबीटी के नाम से जाना जाता है। यह दो साल का डिप्लोमा कोर्स बारहवीं पास छात्रों के लिए तैयार किया गया है। इसके ज़रिये उम्मीदवार प्राइमरी कक्षाओं यानी पहली से पांचवीं तक, और कुछ राज्यों में छठी से आठवीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए योग्य बनते हैं। इस कोर्स में बाल मनोविज्ञान, शिक्षण विधियाँ, कक्षा प्रबंधन और स्कूल की रचनात्मक गतिविधियों पर ख़ास तवज्जो दी जाती है। कम समय में मुकम्मल होने के कारण यह कोर्स रोज़गार की तलाश में लगे युवाओं की पहली पसंद बन चुका है।

इसके बाद बैचलर ऑफ एलिमेंट्री एजुकेशन (बी.एल.एड) का ज़िक्र ज़रूरी है। यह चार साल का कोर्स है, जिसे बारहवीं के बाद शुरू किया जाता है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसमें ग्रेजुएशन और शिक्षक प्रशिक्षण एक साथ मुकम्मल हो जाते हैं। बीएलएड करने वाला छात्र कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने का अहल बनता है। जो विद्यार्थी शुरू से ही उस्ताद बनने का इरादा रखते हैं, उनके लिए यह कोर्स इल्म की मज़बूत बुनियाद तैयार करता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पेश किया गया आईटीईपी (इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम) शिक्षा जगत का एक अहम क़दम है। यह भी चार साल का कोर्स है, जिसमें ग्रेजुएशन और बीएड दोनों एक साथ पूरे होते हैं। इससे छात्रों को अलग से बीएड करने की ज़रूरत नहीं पड़ती और वे स्कूल की पढ़ाई के तुरंत बाद शिक्षक बनने की राह पकड़ सकते हैं।

वहीं उच्च कक्षाओं में पढ़ाने के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए मास्टर ऑफ एजुकेशन (एमएड) एक अहम विकल्प है। यह बीएड के बाद किया जाता है और कक्षा नौ से बारह तक पढ़ाने की योग्यता को और निखारता है।

कुल मिलाकर, बदलती शिक्षा नीतियों ने यह साफ़ कर दिया है कि शिक्षक बनने का रास्ता अब सिर्फ़ बीएड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इल्म और अदब से सजी कई राहें अब नौजवानों के सामने खुल चुकी हैं।