Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार चुनाव के दूसरा चरण में 20 जिलों में 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवार मैदान में, प्रवासी मतदाताओं की सियासत पर भी नजर

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर कुल 1302 उम्मीदवार मैदान में हैं और एक-दूसरे से सियासी जंग लड़ेंगे।

: बिहार चुनाव के दूसरा चरण में 20 जिलों में 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवार मैदान में- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की तस्वीर अब पूरी तरह साफ़ हो गई है। गुरुवार को नाम वापसी की अंतिम तारीख़ खत्म होते ही यह तय हो गया कि 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर कुल 1302 उम्मीदवार मैदान में हैं और एक-दूसरे से सियासी जंग लड़ेंगे। यह वही चरण है, जो कई मायनों में सत्ता की दिशा और दशा तय करेगा।मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (सीईओ) कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक़, दूसरे चरण के लिए 1761 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किए थे। इनमें से 1372 नामांकन स्वीकृत किए गए, जबकि 389 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रद्द कर दिए गए। गुरुवार को नाम वापसी की आख़िरी तारीख़ रही, और इसी दौरान 70 प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस ले लिया।नाम वापसी करने वालों में कांग्रेस और वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के उम्मीदवार भी शामिल हैं। कांग्रेस प्रत्याशियों ने वारिसलीगंज और प्राणपुर विधानसभा सीट से नाम वापसी की, जबकि वीआईपी के उम्मीदवार ने बाबूबरही से मैदान छोड़ दिया। इसके साथ ही दूसरे चरण में फ्रेंडली फाइट की कुछ संभावनाएँ कम ज़रूर हुईं, मगर प्रतिस्पर्धा अभी भी तीखी बनी हुई है।

अब 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को मतगणना। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह चरण महागठबंधन और एनडीए  दोनों ही गठबंधनों के लिए निर्णायक साबित होगा। कई सीटें ऐसी हैं जहाँ सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधन दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।इस बार का चुनाव सिर्फ उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि मतदाता संरचना में आए बदलाव के कारण भी चर्चा में है। चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने इस मुद्दे को और दिलचस्प बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 2 लाख 12 हजार 999 मतदाताओं के नाम प्रवासी घोषित कर सूची से हटा दिए गए हैं। इनमें सबसे ज़्यादा प्रवासी मतदाता पूर्णिया जिले में पाए गए हैं। पूर्णिया में 17,128 मतदाता प्रवासी के रूप में दर्ज किए गए, जबकि सिर्फ पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में ही 13,031 नाम हटाए गए हैं।

यह आँकड़ा महज़ संख्या नहीं, बल्कि राजनीतिक संकेत भी देता है क्योंकि प्रवासी मतदाता प्रायः आर्थिक कारणों से बाहर होते हैं और ये वही वर्ग है जो चुनावी रुझानों पर निर्णायक प्रभाव डालता है। इन नामों के हटने से स्थानीय समीकरण बदल सकते हैं।चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम चंपारण प्रवासी मतदाताओं के लिहाज़ से दूसरे स्थान पर है। वहीं कटिहार में 14,545, पटना में 14,462 और बेगूसराय में 12,497 मतदाताओं के नाम प्रवासी सूची में दर्ज होने के कारण हटाए गए हैं। यह एक बड़ा आंकड़ा है जो बताता है कि प्रवासन अब बिहार की राजनीति का मूक लेकिन प्रभावशाली मुद्दा बन चुका है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इन प्रवासी मतदाताओं की अनुपस्थिति उन उम्मीदवारों के लिए चुनौती बन सकती है जो स्थानीय समीकरणों और जातीय संतुलन के भरोसे जीत की रणनीति बना रहे हैं। मतदाता सूची से नाम हटना सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह भी बताता है कि बिहार का युवा अब रोज़गार और स्थायित्व की तलाश में अपने गाँव-घर से दूर है।आगामी 11 नवंबर को जब मतदान होगा, तब यह साफ़ होगा कि मैदान में उतरे 1302 प्रत्याशियों में से कौन अपने संगठन, रणनीति और जनता से जुड़ाव के बल पर जनता का भरोसा जीत पाता है। एक बात तय है  इस चरण में सियासी दंगल के साथ-साथ प्रवासन का दर्द भी मतदान की नब्ज़ में गूंजता रहेगा।