Bihar Vidhansabha Chunav 2025: तालमेल के बावजूद मैदान में भिड़ेंगे महागठबंधन के साथी, 9 सीटों पर 'मित्रता' की मुठभेड़ का ऐलान

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: अब यह साफ़ हो गया है कि 9 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के अपने ही साथी एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे।

तालमेल के बावजूद मैदान में भिड़ेंगे महागठबंधन के साथी- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन महागठबंधन के भीतर सियासी समीकरण अभी तक पूरी तरह संतुलित नहीं हो पाए हैं। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर लंबे अरसे से चल रही जद्दोजहद तो किसी हद तक थम गई, मगर अब सीटों के बँटवारे ने नया मोर्चा खोल दिया है। गठबंधन के घटक दलों के बीच तालमेल की तल्खी इस क़दर बढ़ चुकी है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में अब दोस्ताना संघर्ष यानी फ्रेंडली फाइट तय मानी जा रही है।

दूसरे चरण के नामांकन वापसी की आख़िरी तारीख़ गुरुवार को गुज़र चुकी है। इसके साथ ही अब यह साफ़ हो गया है कि 9 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के अपने ही साथी एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे। इनमें सबसे ज़्यादा पाँच सीटें ऐसी हैं जहाँ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के उम्मीदवार एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। गठबंधन की साझा प्रेस वार्ता में जब इस अंतर्विरोध पर सवाल उठा तो सीपीआई (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इसे “रणनीतिक मुकाबला” करार दिया। उनका कहना था कि एक-दो प्रतिशत इधर-उधर से कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ेगा, कुछ प्रत्याशी पीछे हट सकते हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है।

मगर जमीनी सच्चाई यह है कि यह रणनीतिक मुकाबला कहीं न कहीं सामरिक असमंजस में तब्दील हो गया है। जनता के बीच यह संदेश भी जा रहा है कि महागठबंधन के भीतर अब भी विश्वास की दीवार पूरी तरह खड़ी नहीं हो पाई है। आगामी चरणों में यह स्थिति और पेचीदा हो सकती है क्योंकि कांग्रेस को 9 सीटों पर अपने ही सहयोगियों से टक्कर लेनी पड़ेगी।

गुरुवार को हालांकि दो सीटों पर फ्रेंडली फाइट टल गई  वारिसलीगंज से कांग्रेस प्रत्याशी और बाबूबरही से वीआईपी प्रत्याशी ने नाम वापस ले लिया। लेकिन शेष 9 सीटों पर मुकाबला बरक़रार है।

कहलगांव में राजद के रजनीश भारती और कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा आमने-सामने हैं।वैशाली में कांग्रेस के संजीव सिंह बनाम राजद के अजय कुशवाहा का मुक़ाबला।नरकटियागंज में राजद के दीपक यादव के सामने कांग्रेस के शाश्वत केदार पांडेय मैदान में हैं।सिकंदरा में राजद के उदय नारायण चौधरी और कांग्रेस के विनोद चौधरी के बीच सीधी जंग है।सुल्तानगंज में राजद के चंदन सिन्हा का मुक़ाबला कांग्रेस के ललन कुमार से है।वहीं बछवाड़ा, राजापाकर (सु.), बिहारशरीफ और करगहर सीटों पर कांग्रेस और सीपीआई के उम्मीदवार एक-दूसरे से जूझ रहे हैं।चैनपुर में राजद के ब्रजकिशोर बिंद बनाम वीआईपी के बालगोविंद बिंद हैं, जबकि बेलदौर में कांग्रेस की मिथिलेश निषाद का सामना आईआईपी की तनीषा चौहान से है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दोस्ताना संघर्ष शब्द जितना सौम्य सुनाई देता है, व्यवहार में वह उतना ही घातक साबित हो सकता है। इससे मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति बनती है और विपक्ष को अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है।

बिहार की राजनीति में यह दृश्य नया नहीं है, पर इस बार जब माहौल नरेटीव की जंग पर टिका है, तब सहयोगियों के बीच यह प्रतिस्पर्धा महागठबंधन की एकता पर सवालिया निशान छोड़ रही है। जनता अब यह देख रही है कि क्या “फ्रेंडली फाइट” सचमुच रणनीतिक सूझबूझ का हिस्सा है या फिर सियासी असंतोष का संकेत।

आने वाले हफ्तों में यह तय होगा कि यह मित्रता की मुठभेड़ महागठबंधन को मज़बूत करेगी या फिर भीतर ही भीतर उसे कमजोर कर देगी। बिहार की सियासत में दोनों ही संभावनाएँ पूरी तरह ज़िंदा हैं।