Pipra Assembly Seat: कभी कांग्रेस और वाम दलों का गढ़, अब भाजपा-जदयू का मजबूत किला

Pipra Assembly Seat

Pipra Assembly Seat : पूर्वी चंपारण की पिपरा विधानसभा सीट बिहार की उन सियासी सीटों में से एक है, जिसने समय के साथ अपने राजनीतिक मिजाज को पूरी तरह बदल डाला। एक दौर में जहां इस सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और कांग्रेस का दबदबा रहा, वहीं अब यह भाजपा और जदयू के गठबंधन का मजबूत गढ़ बन चुकी है। वर्तमान में भाजपा के श्यामबाबू प्रसाद यादव यहां से विधायक हैं।

1957 में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी पिपरा विधानसभा सीट ने शुरुआती दशकों में CPI और कांग्रेस को मौका दिया। कांग्रेस यहां से अब तक पांच बार जीत चुकी है, लेकिन 1985 के बाद से उसे यहां सफलता नहीं मिली। वहीं, जनता दल ने दो बार और CPI ने तीन बार जीत दर्ज की। 2000 में इस सीट पर राजद ने पहली बार कब्जा जमाया जब सुरेंद्र चंद्रा ने भाजपा के कृष्णा नंदन पासवान को हराया। लेकिन यह एक अल्पकालिक जीत साबित हुई। 2005 के फरवरी और अक्टूबर दोनों चुनावों में कृष्णा नंदन पासवान भाजपा के टिकट पर जीतकर इस सीट पर पार्टी का खाता खोलने में सफल रहे। 2010 में जदयू के अवधेश प्रसाद कुशवाहा ने जीत दर्ज की, लेकिन 2015 से भाजपा लगातार मजबूत होती गई। भाजपा के श्यामबाबू प्रसाद यादव ने 2015 में जदयू के कृष्णा चंद्र को 3,930 वोटों के अंतर से हराया और 2020 में भी अपनी जीत दोहराई।

2020 के विधानसभा चुनाव में पिपरा सीट पर कुल 44.18% मतदान हुआ। भाजपा प्रत्याशी श्यामबाबू प्रसाद यादव ने CPI (मार्क्सवादी) के राजमंगल प्रसाद को 8,177 वोटों के अंतर से हराया। इस चुनाव में भाजपा ने न केवल सीट बचाई बल्कि वामपंथी दलों की वापसी की कोशिशों को भी रोक दिया। 2015 में श्यामबाबू को 65,552 (38.00%) वोट मिले थे जबकि जदयू के कृष्णा चंद्र को 61,622 (35.72%) वोट हासिल हुए थे। यह मुकाबला बेहद नजदीकी रहा और जदयू-भाजपा गठबंधन में सीट के भीतर अंदरूनी प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिली थी।

पिपरा विधानसभा की सामाजिक बनावट चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभाती है। अनुसूचित जाति के मतदाता यहां लगभग 15.89% हैं जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 12.1% हैं। 90% से अधिक मतदाता ग्रामीण हैं, जिससे विकास के मुद्दे, विशेषकर कृषि, सड़क, और बिजली, प्रमुख बन जाते हैं। वहीं, 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गई और अब यह पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। पहले यह मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र में आती थी। इसके तहत चकिया (पिपरा), तेतरिया और मेहसी जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया।

अब तक पिपरा में हुए 15 विधानसभा चुनावों में कोई भी नेता दो बार से अधिक नहीं जीत सका है। इससे यह साफ है कि यहां के मतदाता बदलाव के पक्षधर रहे हैं और वे दलों व प्रत्याशियों के प्रदर्शन के आधार पर निर्णय लेते हैं। हालांकि, पिछले तीन चुनावों से भाजपा-जदयू के उम्मीदवार ही विजेता रहे हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गठबंधन की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत हुई है।