Bihar Vidhansabha Chunav 2025: राघोपुर में वोटिंग जारी, परंपरा बनाम बदलाव की जंग में तेजस्वी से एनडीए के सतीश की टक्कर, मतदाता कर रहे फैसला

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: राघोपुर सीट, जिसे लंबे अरसे से राजद और लालू परिवार का सियासी किला माना जाता रहा है। यहां तेजस्वी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है.......

परंपरा बनाम बदलाव की जंग में तेजस्वी से एनडीए के सतीश की टक्कर- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के इस दौर में बीजेपी ने अपना फोकस सिर्फ मेगा रैलियों और जोरदार प्रचार तक सीमित नहीं रखा है। इस बार पार्टी ने विपक्ष के मजबूत गढ़ों को सीधी चुनौती देने की रणनीति अपनाई है। इन्हीं में से सबसे चर्चित नाम है वैशाली जिले की राघोपुर सीट, जिसे लंबे अरसे से राजद और लालू परिवार का सियासी किला माना जाता रहा है। 2015 और 2020 में यहां से तेजस्वी यादव ने जीत हासिल की, जबकि इस सीट की पहचान एक आम निर्वाचन क्षेत्र से कहीं आगे बढ़कर परिवारिक वर्चस्व और राजनीतिक परंपरा की सीट के रूप में रही है।

1995 में जब लालू प्रसाद यादव ने राघोपुर को अपना चुनाव क्षेत्र बनाया, तभी से यह इलाका सत्ता की राजनीति और मीडिया की सुर्खियों का स्थाई हिस्सा बन गया। बाद में राबड़ी देवी ने भी यहां से जीत दर्ज की। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए तेजस्वी यादव ने दो बार जीतकर इस क्षेत्र में परिवार की पकड़ बरकरार रखी। लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई दिखाई दे रही है।

पटना में वोट डालने के बाद तेजस्वी ने कहा कि 14 नवंबर को बिहार में नई सरकार बनेगी पर ज़मीन पर समीकरण उतने सहज नहीं नज़र आते। राघोपुर हाई-प्रोफाइल सीट है, सुरक्षा और व्यवस्था पर बेहद कड़ी नज़र है और मतदान केंद्रों पर बड़ी संख्या में वोटर्स लगातार पहुंच रहे हैं।

इसी बीच बीजेपी ने इस सीट पर सतीश कुमार यादव को सामने लाकर मुकाबले को धारदार बना दिया है। सतीश वही नेता हैं जिन्होंने 2010 में जदयू उम्मीदवार के रूप में राबड़ी देवी को हराकर राजनीतिक हलकों में तूफ़ान मचा दिया था। 2015 और 2020 में वह तेजस्वी से हार जरूर गए, मगर इस बार परिदृश्य बदला है—जदयू फिर से बीजेपी के साथ और लोजपा भी एनडीए खेमे में। पिछले चुनाव में लोजपा प्रत्याशी राकेश रौशन को 25,000 से ज्यादा वोट मिले थे और उन्होंने बीजेपी का साथ पकड़कर इस बार एनडीए का वोट बैंक और मजबूत कर दिया है। यही वजह है कि इस चुनाव में सतीश की चुनौती पहले से कहीं अधिक कठिन मानी जा रही है।

दिलचस्प पहलू यह भी है कि राघोपुर की सीट पिछले 60 सालों से यदुवंशी नेतृत्व के पास रही है। पहली बार यह परंपरा 2010 में टूटी थी, और अगर इस बार दोबारा वही इतिहास दोहराया गया, तो यह सिर्फ एक जीत-हार नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतीकवाद का बड़ा संदेश होगा।

राघोपुर का मुकाबला सिर्फ दो उम्मीदवारों की लड़ाई नहीं यह वंश बनाम विकास, परंपरा बनाम बदलाव, और भावनात्मक जुड़ाव बनाम राजनीतिक समीकरणों का असली इम्तिहान है। कौन जीतेगा यह सिर्फ राघोपुर ही नहीं, पूरे बिहार की हवा का रुख बता देगा।