Crime News:मासूम पर गिरी मुफ़लिसी की मार, पिता ने नवजात को 50 हज़ार में बेचा, सीएम के आदेश पर बच्चा बरामद

Crime News: गरीबी और लाचारी की हद तब पार हो गई, जब एक पिता ने अपने महज़ एक महीने के बेटे को 50 हज़ार रुपये में बेच डाला।...

मासूम पर गिरी मुफ़लिसी की मार, पिता ने नवजात को 50 हज़ार में बेचा, सीएम के आदेश पर बच्चा- फोटो : NEWS 4 NATION

N4N डेस्क:  झारखंड के पलामू ज़िले के लेस्लीगंज क्षेत्र से इंसानियत को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। गरीबी और लाचारी की हद तब पार हो गई, जब एक पिता ने अपने महज़ एक महीने के बेटे को 50 हज़ार रुपये में बेच डाला। जैसे ही मामला प्रकाश में आया, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान लिया और पुलिस को तत्काल कार्रवाई का निर्देश दिया। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बच्चे को सुरक्षित बरामद कर लिया।

लेस्लीगंज सर्किल ऑफिसर सुनील कुमार सिंह ने बताया कि दंपति ने मुफ़लिसी के चलते अपने नवजात को एक अन्य दंपति को सौंप दिया था। घटना उजागर होते ही प्रशासन ने परिवार को 20 किलो राशन उपलब्ध कराया।

बच्चे के पिता रामचंद्र राम की बेबसी सुनकर हर कोई सन्न रह गया। उन्होंने कहा— “मेरे पास न इलाज के पैसे हैं और न बच्चों को खिलाने का इंतज़ाम। पत्नी प्रसव के बाद से बीमार है। कई महीनों से बेरोज़गार हूँ, बारिश के कारण काम भी बंद पड़ा है। सड़क किनारे टीन के छप्पर तले गुज़ारा कर रहे हैं। इसी मजबूरी में बच्चे को बेचने का फ़ैसला किया।”

रामचंद्र मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर के रहने वाले हैं और पिछले 15 सालों से अपनी पत्नी पिंकी देवी व बच्चों संग झारखंड के लोटवा गाँव में रह रहे हैं। कभी मज़दूरी, कभी भीख – यही उनके जीवन का सहारा है। उनके पास न आधार कार्ड है, न राशन कार्ड, जिस कारण वे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे।

बच्चे की मां पिंकी देवी ने भी रोते हुए अपनी मजबूरी बयान की। उन्होंने बताया कि पिता की दी हुई ज़मीन पर बनी झोपड़ी भारी बारिश में ढह गई, अब पूरा परिवार टीन के छप्पर के नीचे रह रहा है। इसी हालात में बच्चे का जन्म हुआ और तब से वह लगातार बीमार है।

लेस्लीगंज पुलिस ने जानकारी दी कि बच्चे को सुरक्षित बरामद कर लिया गया है और मामले की जाँच जारी है। अधिकारी उत्तम कुमार राय ने कहा कि टीम ने लातेहार से बच्चे को सुरक्षित वापस लाने का कार्य किया।

यह घटना न सिर्फ़ गरीबी की वीभत्स तस्वीर पेश करती है बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि विकास और योजनाओं की गूंज के बीच ज़मीन पर अब भी कितने रामचंद्र अपने मासूमों की क़ीमत मुफ़लिसी से चुका रहे हैं।