मोहे बिटिया न कीजो: दहेज की बलि वेदी पर 11 महीने में 19 बेटियों का मर्डर, पिछले 3 साल में 44 विवाहिता की हत्या की वजह बनी दहेज..
2021 में, बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार ने व्यापक जागरूकता अभियान चलाया।
Dowry news: दहेज के खिलाफ सख्त कानूनों और जागरूकता अभियानों के बावजूद, हमारे समाज में दहेज उत्पीड़न की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। दहेज की मांग पूरी न होने पर महिलाओं को प्रताड़ित करना और कभी-कभी उनकी हत्या कर देना जैसी घटनाएं अब भी आम हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023 के पहले 11 महीनों में दहेज न देने के कारण 19 महिलाओं की हत्या हुई। यह संख्या 2022 में 15 और 2021 में 5 थी। इन आंकड़ों से साफ है कि दहेज से जुड़ी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
मामलों की वास्तविकता और रिपोर्टिंग
हालांकि, दर्ज मामलों के अलावा भी कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जो सामाजिक दबाव और परिवार की बदनामी के डर से पुलिस में दर्ज नहीं हो पातीं। इसके बावजूद, हर महीने विभिन्न थानों में दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के दर्जनों केस दर्ज किए जाते हैं। विडंबना यह है कि इतने सख्त कानून होने के बावजूद अधिकतर मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिल पाती। यह न्यायिक प्रक्रिया में खामियों और समाज में मौजूद दहेज प्रथा के प्रति सहिष्णुता का परिणाम है।
दहेज के खिलाफ सरकारी प्रयास
2021 में, बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार ने व्यापक जागरूकता अभियान चलाया। इसी दौरान, जिले में मानव श्रृंखला का आयोजन किया गया, जिसने लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने में मदद की। इसका असर यह हुआ कि 2021 में दहेज हत्या के केवल 5 मामले दर्ज हुए। हालांकि, इस जागरूकता का प्रभाव लंबे समय तक टिक नहीं पाया, और 2022 से मामलों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई।
आगे की राह
सख्त कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन: दहेज उत्पीड़न के मामलों में तेजी से कार्रवाई और दोषियों को सजा दिलाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करना जरूरी है।
सामाजिक जागरूकता: समाज को इस कुरीति के खिलाफ शिक्षित और जागरूक करना, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, दहेज प्रथा को खत्म करने में मददगार हो सकता है।
समर्थन प्रणाली: पीड़ित महिलाओं के लिए कानूनी सहायता, काउंसलिंग, और पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराना।
दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप है, और इसे खत्म करने के लिए न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है।