प्रयागराज में क्यों लगने लगा महाकुंभ का मेला, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, कैसे कौवा बन अमृत ले उड़ा था इंद्र का बेटा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, गंगा का जल अमृत तुल्य माना जाता है क्योंकि उसमें वही अमृत मिला हुआ है, जो युगों पहले समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ था।
Mahakumbh 2025: ऋषिकेश में देवी गंगा ने एक बार फिर ऊंचे पर्वतों की ओर देखा, मानो उन्हें अलविदा कह रही हों। यह पर्वतों के बीच उनका अंतिम पड़ाव था और अब वह मैदानों की ओर बढ़ने वाली थीं। हरिद्वार उनका पहला मैदानी पड़ाव है, जहां वह अपनी अमृत तुल्य धारा से इस भूमि को सिंचित करती हैं।
अमृत और गंगा का पवित्र संबंध
पौराणिक मान्यता के अनुसार, गंगा का जल अमृत तुल्य माना जाता है क्योंकि उसमें वही अमृत मिला हुआ है, जो युगों पहले समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ था। देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत प्रकट हुआ, तो उसे पाने की होड़ में दोनों में भीषण संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में असुरों को अमृत प्राप्त नहीं हो सका, लेकिन इस अमृत के धरती पर गिरने से कुछ पवित्र तीर्थस्थल बने।
अमृत कुंभ और पवित्र तीर्थों की उत्पत्ति
अमृत कुंभ से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर छलक गईं, जिससे चार पवित्र तीर्थों का निर्माण हुआ। इनमें से हरिद्वार पहला तीर्थस्थल है। इसके बाद प्रयागराज का तीर्थराज, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इन स्थानों को अमृत की बूंदों से पवित्र माना गया और इसलिए महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजनों का आरंभ भी यहीं हुआ।
समुद्र मंथन की कथा
पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों ने भगवान विष्णु के सुझाव पर समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया था। मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला, जिसे शिव ने ग्रहण कर सृष्टि की रक्षा की। इसके बाद एक-एक करके रत्न प्रकट हुए। अंत में, जब धन्वंतरि प्रकट हुए, तो उनके हाथों में अमृत से भरा दिव्य कुंभ था। जैसे ही देवों और असुरों ने इस अमृत को देखा, उनके बीच होड़ मच गई।
अमृत की छीना-झपटी और पवित्र नदियां
अमृत कलश को लेकर देवता और असुर दोनों ने एक-दूसरे से छीना-झपटी शुरू कर दी। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। अमृत की ये बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे स्थानों पर गिरीं, जहां से यह तीर्थ स्थल अमरत्व का प्रतीक बन गए। विशेष रूप से गंगा नदी में दो बार अमृत गिरा – एक बार हरिद्वार में और दूसरी बार प्रयागराज में, जहाँ तीन नदियों का संगम होता है। यही कारण है कि प्रयागराज को तीर्थराज का दर्जा प्राप्त है और महाकुंभ का आयोजन यहां युगों से होता आ रहा है।
प्रयागराज का महाकुंभ 2025
2025 में एक बार फिर प्रयागराज महाकुंभ का आयोजन करेगा, जहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। यह आयोजन अमृत की उस पवित्रता का प्रतीक है, जिसे देवताओं ने पृथ्वी पर छोड़ा था। इस प्रकार, गंगा और अन्य पवित्र नदियों का जल अमृत के समान माना जाता है, और यह तीर्थस्थल लाखों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का केंद्र बने रहते हैं।