सृजन और संकल्प का पर्व बसंत पंचमी,रँग गई पग-पग धन्य धरा, हुई जग जगमग मनोहरा
पटना- बसंत इस प्रकृति का यौवन है, तभी तो बसन्त को ऋतुराज माना गया है.वसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को वासंती रंग से सराबोर कर रहा है.मौसम का सुहानापन मन को भी रूमानी बना देता है. इस पर नियंत्रण के लिए वसंत पंचमी को मन की देवी मां सरस्वती की पूजा का विधान है.
नर-नारी उल्लास से भरपूर हैं , इसलिए इस अवसर पर सरस्वती की पूजा का विधान है. ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं. ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु.
जीवन में विवेक , चंचल पर पर अंकुश ..वसंत के स्वागत और उस स्वागत में साहित्य, संगीत और कला की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का पूजन मन पर बुद्दि के नियंत्रण के लिए हीं तो है.
सनातन ग्रंथों के अनुसार वसंत कामदेव के दोस्त हैं, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ माना गया है. इस धनुष की कमान स्वरविहीन बताया गया है. कामदेव कमान से निकली तीर बिना आवाज के ह्रदय को छलनी कर देती है.कामदेव को 'अनंग' भी कहा गया है. इनका एक नाम 'मार' है यानी इतकी मार से मां सरस्वती हीं बचा सकती है. वसंत ऋतु को प्रेम का ऋतु माना गया है. इसमें फूलों के बाणों से आहत प्रेमी मन का हृदय प्रेम से सराबोर होकर नियंत्रण की सीमा से आगे बढ़ने लगता है, लेकिन सावधान हे मां शारदे बुद्दि दो..
गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की आग को और भड़काता है. सुहाना मौसम चहुंओर हरियाली , मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, आम के मंजर और वृक्षों पर कोयल की कूक प्रेमी मन को हूक दे रहे हैं. मन व्याकुल है, आम के मोंजर की सुगंधी मन को नियंत्रण में रहने नहीं दे रहा. प्रेमी दिल में आग लग रही है. सीमाओं का भान किसे है. बढ़ चले लेकिन हे मां शारदे अब तो दया करो....लेकिन लेकिन सखि आयो वसंत...