Bihar News: बिहार का एक ऐसा मंदिर जहां नवरात्रि में महिलाओं का प्रवेश है वर्जित, वजह जान उड़ जाएंगे होश !

Ashapuri temple

Bihar News: नवरात्रि में नौ दिनों तक बड़े ही भक्ति भाव ने माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। सभी भक्त इन दिनों माँ की आराधना करते हैं। नवरात्रि शक्ति की देवी माँ दुर्गा को समर्पित है। वहीं आज हम आपको बिहार के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां नवरात्रि में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा होती जो खुद महिलाएं हैं ऐसे में मंदिर में महिलाओं का प्रवेश ही वर्जित होना कई सवाल खड़ा करता हैं। ऐसे में हम आज आपको इस मंदिर जुड़ी जानकारी देंगे साथ ही ये भी बताएंगे कि आखिरी नवरात्रि में इस मंदिर में महिलाएं प्रवेश क्यों नहीं करती हैं।

महिलाओं का प्रवेश वर्जित

दरअसल, यह मंदिर बिहार के नालंदा जिले के घोसरावा गांव में स्थिति है। मंदिर का नाम आशापुरी मंदिर हैं। इस मंदिर में चली आ रही परंपरा के अनुसार अश्विन और चैत्र नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। बताया जाता है कि इस मंदिर में विशेष रूप से तांत्रिक विधि से माता की पूजा अर्चना की जाती है तांत्रिक अनुष्ठानों का विशेष महत्त्व होता है। इस कारण महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है | 

मंदिर में होती है तांत्रिक पूजा

मंदिक के पुजारी पुरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि आशापुरी मंदिर को तांत्रिक पूजा के लिए जाना जाता है। यहां की पूजा पद्धति सामान्य मंदिरों से अलग है। यहां मंत्र, यंत्र और तंत्र की विशेष साधनाएं की जाती है। मंदिर के पुजारियों और तांत्रिक साधकों का मानना है कि तांत्रिक अनुष्ठानों के दौरान अत्यधिक उग्र और तीव्र ऊर्जा का संचार होता है। इसे संभालना साधारण लोगों के लिए संभव नहीं होता, खासकर महिलाओं के लिए। तांत्रिक पूजा की इस प्रक्रिया में शक्ति का आह्वान किया जाता है, जो बेहद संवेदनशील और गूढ़ होती है। पुजारियों और ग्रामीणों की मानें तो तांत्रिक परंपराओं के अनुसार इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान वर्जित है। क्योंकि इस समय साधनाएं अधिक शक्तिशाली और संवेदनशील होती हैं। 


सदियों से चली आ रही है परंपरा

यह मान्यता है कि तांत्रिक क्रियाओं के दौरान उत्पन्न ऊर्जा और शक्तियां महिलाओं पर विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं। इसके अलावा मंदिर की पूजा पद्धति और तांत्रिक साधनाएं विशेष रूप से पुरुष साधकों के लिए निर्धारित की गयी है। यह सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी बदस्तुर जारी है। मां आशापुरी मंदिर की यह परंपरा सदियों पुरानी है, जो आज भी बिना किसी बदलाव के निरंतर जारी है। स्थानीय लोग इसे पूरी आस्था और श्रद्धा से निभाते हैं। उनका मानना है कि इस परंपरा का पालन करने से गांव और क्षेत्र में शांति, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। 

दशमी के दिन महिलाएं करती हैं प्रवेश

घोसरावां की आशापुरी मंदिर भारतीय तांत्रिक परंपराओं का एक अद्वितीय स्थल है, जहां तांत्रिक साधनाएं और पूजा पद्धतियां सदियों से उसी आस्था और विश्वास के साथ निभाई जा रही है। नवरात्रि के दौरान महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी इस मंदिर की विशिष्टता को और बढ़ाती है। दशमी के दिन महिलाएं मंदिर जाकर भक्ति भाव से पूजा अर्चना करती है |

नालंदा से राज की रिपोर्ट

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