केंद्र सरकार ने एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल और ज्यादा प्रयोग को लेकर चिकित्सकों - फार्मासिस्टों को किया सावधान
N4N Desk – मनुष्य का स्वास्थ्य बिगड़ने पर कई बार एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी जाती है. इसकी वजह से दुनियाभर में बीमार होने की दर और बीमारी से मरने वालों की संख्या में कमी आ रही है.यह एक ऐसी दवा है जो इंसानों और जानवरों का वायरस, बैक्टीरिया आदि से बचाव करती है. एंटीबायोटिक्स को मूल रूप से माइक्रोऑर्गेनिज़्म को रोकने वाला एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स के रुप में जाना जाता है.
एंटीबायोटिक्स के ज्यादा इस्तेमाल से दवाओं के प्रभाव कम होने की चेतावनी चिकित्सक दे रहे हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बृहस्पतिवार और फार्मासिस्टों से दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने और दिशा-चिकित्सकों को पालन करने को कहा. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने मेडिकल कॉलेजों के चिकित्सकों को लिखे अलग-अलग पत्रों में अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन और मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि ‘एंटीबायोटिक्स दवाएं लिखते समय संकेत, कारण, औचित्य’ लिखना एक अनिवार्य अभ्यास बनाया जाना चाहिए.
फार्मासिस्टों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पत्र जारी कर कहा है कि एंटीमाइक्रोबियल दवा डॉक्टर की पर्ची के बगैर न दी जाए. एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में विश्व के तुलना में एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधी बैक्टीरिया की दर सबसे अधिक है. भारत में यह महामारी का रूप धारण कर रहा है. एंटीबायोटिक्स दवाओं के सही उपयोग की तत्काल सलाह दी गई है
भारते के 15 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के अस्पतालों में सत्तर फिसदी से अधिक रोगियों को एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी गईं और दिए गए पचास फिसदी से अधिक एंटीबायोटिक्स में एएमआर विकसित होने की क्षमता पाई गयी .सर्वेक्षण में शामिल पचपन प्रतिशत रोगियों को निवारक के रूप में एंटीबायोटिक्स दिए गए थे. इनमें से वास्तव में केवल पचास फिसदी को संक्रमण का इलाज करने के लिए एंटीबायोटिक्स निर्दिष्ट किया गया था और केवल छह प्रतिशत को विशिष्ट बैक्टीरिया की पहचान करने के बाद दवाएँ दी गई थीं .
रोगाणु रोकने के दवाओं के एक प्रकार के दुरुपयोग और अति प्रयोग से दवा–प्रतिरोधी रोगजनकों का विकास होता है जो बदले में जीवन के लिए बड़ा खतरा पैदा करते हैं और रोग को और बढ़ाते हैं. प्रतिरोध यानी एएमआर तब होता है जब रोगजनक विकसित होते हैं और दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं और रोगाणुरोधी दवाएँ इन पर काम करना बंद कर देते हैं.रोगज़नक़ों का विकसित होना उनकी प्रकृति है, लेकिन ख़राब चिकित्सा और पशुपालन प्रथाओं के कारण इस लगातार बढ़ते संकट में और वृद्धि हो रही है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बैक्टीरियल एएमआर वर्ष 2019 में 1.27 मिलियन वैश्विक मौतों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार था और इसने 4.95 मिलियन मौतों में भी अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया.
संक्रमण के इलाज को कठिन बना देता है तथा अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं और उपचारों जैसे सर्जरी, सिजेरियन सेक्शन और कैंसर कीमोथेरेपी को और अधिक खतरनाक बना देता है.केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने एएमआर के सम्बन्ध में चेतावनी दी है और एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कसंगत नुस्खे और जानवरों और पौधों में विकास को बढ़ावा देने के लिए दवाओं के उपयोग पर अंकुश लगाने का आह्वान किया है.