विदेश से डॉक्टर बनकर आए बच्चे भारत में कर सकेंगे इंटर्नशिप, 7.5 फीसदी सीटें की गई रिजर्व, लेकिन करना होगा यह काम

DESK : यूक्रेन में  युद्ध के कारण अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई अधूरा छोड़कर भारत लौटे छात्रों को सरकार की तरफ से बड़ी राहत दी गई है। भारत लौटे छात्रों की युद्ध में जान तो बच गई, लेकिन उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंता थी। अब इन छात्रों के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन ने कहा है कि जिन मेडिकल स्टूडेंट्स की डिग्री पूरी हो चुकी है, उन्हें भारत में इंटर्नशिप करने का मौका मिलेगा। विदेश से पढ़कर आने वाले छात्रों के लिए इंटर्नशिप की 7.5% सीटें भी तय की गईं हैं।

पूरे देश में इंटर्नशिप फीस को किया माफ

यूक्रेन से लौटे स्टूडेंट्स को अपनी बीच में छूटी हुई इंटर्नशिप को पुरा करने का मौका दे रहें हैं। अब तक केवल दिल्ली में इंटर्नशिप फीस नहीं देनी पड़ती थी। लेकिन अब नेशनल मेडिकल कमीशन ने फैसला लिया है कि इन छात्रों को किसी भी राज्य में फीस नहीं देनी होगी। हालांकि अप्लाई करने वाले स्टूडेंट्स को इंटर्नशिप पूरी करने के लिए पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (FMGE) स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होगा। यह टेस्ट परीक्षा पास करने के बाद ही उन्हें भारत में इंटर्नशिप करने का मौका मिलेगा।

पिछले साल तक के स्टूडेंट्स के लिए नियम

मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन के नियम 2021 के मुताबिक, भारत में रजिस्ट्रेशन के लिए मेडिकल के स्टूडेंट्स को दो बार इंटर्नशिप करनी होता है। पहले उस जगह जहां से उन्होंने MBBS की डिग्री ली हो और फिर भारत में आकर। 

हालात को देखकर लिया फैसला

सरकार ने यह छूट मौजूदा हालत को देखकर दिया है। अन्यथा फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (FMGE) को लेकर नेशनल मेडिकल कमीशन के नियम काफी सख्त हैं। यहां ऐसा कोई नियम नहीं था, जो विदेश में पढ़ रहे मेडिकल स्टूडेंट्स को भारत आकर पढ़ाई पूरी करने की छूट देता हो, यहां तक कि किसी और देश या यूनिवर्सिटी से MBBS पूरा करने पर भी समस्याएं थी।

FMGE पास करना है बेहद मुश्किल

किसी भी भारतीय स्टूडेंट्स ने विदेश के मेडिकल कॉलेज से प्राइमरी मेडिकल क्वालिफेकशन प्राप्त की है और वो भारतीय मेडिकल काउंसिल से प्रोविजनल प्राप्त करना चाहता है, तो उसे फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (FMGE) स्क्रीनिंग टेस्ट क्लियर करना होगा। ये एग्जाम मल्टीपल च्वॉइस बेस्ड होते हैं। इसमें गलत जवाब देने पर नेगेटिव मार्किंग नहीं होती। हालांकि रिकार्ड बताते हैं कि पिछले सात साल में 20 फीसदी से भी कम विदेश से मेडिकल पढ़ाई करनेवाले छात्र इस परीक्षा को पास कर पाए हैं।