पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट : सबसे अधिक राजपूतों को मिला मौका, BJP के अंदर ही उठी जबरदस्त मांग- सवर्णो में सबसे अधिक वोटर वाले समाज को मिले टिकट

PATNA: पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) लोकसभा सीट पर टिकट को लेकर दावेदारी और राजनीतिक चर्चा जारी है. 1952 से लेकर 2019 तक 17 बार लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें सबसे अधिक सवर्ण(राजपूत) सात बार चुनाव जीते. दावा किया जाता है कि इस सीट पर सवर्णों में सबसे अधिक भूमिहार जाति की आबादी है. इसके बाद भी भाजपा ने राजपूत जाति से आने वाले राधामोहन सिंह को नौ बार मौका दिया. ये अब तक छह बार चुनाव जीत चुके हैं. ब्राह्मण उम्मीदवार पांच बार चुनाव जीते, जबकि भूमिहार प्रत्याशी की तीन दफे जीत हुई है। वैश्य कैंडिडेट की अब तक दो दफे जीत मिली हैं. इस लोकसभा सीट पर वैश्यों की भी बड़ी आबादी है.
राजपूत बिरादरी से आने वाले राधामोहन सिंह 2009 से तो लगातार चुनाव जीत रहे हैं. जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। हालांकि, उम्र 75 वर्ष के करीब है. लिहाजा इस बार पार्टी टिकट देगी या नहीं, इस पर मंथन जारी है. पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) लोकसभा सीट पर चूंकि सवर्णों में सबसे अधिक भूमिहार वोटर हैं, लिहाजा भाजपा के अंदर से ही इस समाज से उम्मीदवार देने की मांग जबरदस्त रूप से उठी है. इस वर्ग से भाजपा कोटे से उम्मीदवारी की रेस में कई नाम हैं. संभावित नाम केंद्रीय नेतृत्व तक भी पहुंचा है. अब देखना होगा कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का निर्णय क्या होता है...। हालांकि यह पहली बार है कि भाजपा के अंदर से ही पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट पर भूमिहार जाति से कैंडिडेट देने की मांग उठ रही है. पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के भाजपा नेता राजा ठाकुर ने बताया कि पूर्वी चंपारण और शिवहर लोकसभा परंपरागत तौर पर भाजपा का गढ़ रहा है.यहां पर पार्टी संगठन संरचना तुलनात्मक तौर पर बेहतर है। ऐसे में भाजपा को इन दोनों सीटों पर निश्चित रूप से लड़ना चाहिए।
भाजपा नेता राजा ठाकुर ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उत्तर बिहार में उम्मीदवारों को लेकर जातीय समन्वय आवश्यक है। उनका कहना है कि यदि भूमिहार बिरादरी की बात की जाए तो जंगल राज के खिलाफ भूमिहारों ने लंबी लड़ाई लड़ी है,और लोकसभा में इस जाति का कोई प्रतिनिधित्व किसी पार्टी से नहीं है। यद्यपि 14वीं लोकसभा में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने इस सीट पर राजद से प्रतिनिधित्व किया था। वे मूल रूप से दक्षिण बिहार के अरवल जिले से आते हैं। मोतिहारी जिले से उनका सिर्फ राजनीतिक ताल्लुकात है.
भाजपा नेता का मानना है कि मोतिहारी लोकसभा सीट पर सवर्णों में सबसे अधिक वोटर ब्रह्मर्षि समाज से हैं. लेकिन इस सीट से भाजपा उनको प्रतिनिधित्व नहीं दे रही. ब्रह्मर्षि समाज इस बात से आहत है। उन्होंने कहा कि हमेशा से यह समाज भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के पक्ष में मतदान करता आया है, ऐसे में पार्टी नेताओं को समाज की भावनाओं का आदर करते हुए उत्तर बिहार से कम से कम एक प्रत्याशी इस समाज से चुनना चाहिए। निश्चित रूप से उत्तर बिहार के लिए यह एक बड़ा संदेश होगा और इसके सार्थक परिणाम भी आएंगे। विदित हो कि ठाकुर भाजपा के एक पुराने कार्यकर्ता है और पार्टी में अच्छी पहचान रखते हैं पूर्व में उन्होंने जिला भाजपा में कई महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया है संप्रति वे भाजपा जिला प्रवक्ता है।
मोतिहारी लोकसभा सीट की बात करें तो 1952 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर विभूति मिश्र चुनाव जीते थे. वे1952 से लेकर 1971 तक यहां से सांसद रहे। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने ठाकुर रमापति सिंह ने जनता पार्टी से जीत दर्ज की। हालांकि, 1980 में हुए चुनाव में रमापति सिंह को सीपीआई के कमला मिश्र मधुकर ने हरा दिया। 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रभावती गुप्ता ने कमला मिश्र मधुकर को हरा दिया. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राधा मोहन सिंह ने प्रभावती गुप्ता को हरा दिया। इसके बाद 1991 में मध्यावधि चुनाव हुआ। राधा मोहन सिंह फिर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन सीपीआई के कमला मिश्र मधुकर ने उन्हें हरा दिया। 1996 के चुनाव में बीजेपी ने राधा मोहन सिंह को मैदान में उतारा. इस बार इनकी जीत हो गई। ।
1998 लोकसभा चुनाव में राजद की रमा देवी के हाथों राधा मोहन सिंह की हार हो गई। 1999 के मध्यावधि चुनाव में बीजेपी के टिकट पर एक बार फिर से राधा मोहन सिंह की जीत हुई। 2004 लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर भूमिहार जाति से आने वाले डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह चुनावी मैदान में उतरे। उन्होंने यहां बीजेपी के तीन बार के सांसद रहे राधा मोहन सिंह को हरा दिया। इसके बाद उन्हें केंद्र में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भी बनाया गया। 2008 में मोतिहारी लोकसभा का नाम बदल कर पूर्वी चंपारण लोकसभा हो गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर फिर राधा मोहन सिंह चुनाव जीत गे। तब से वे लगातार सांसद हैं.