मोहम्मद साहेब को मर्यादा पुरुषोत्तम बोलवाना ,रामचरितमानस पर विवादित बयान,टीका पर विवाद,सनातन पर हमला के बाद चुप्पी, लालू के सियासी प्लान पर काम शुरू! पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

पटना- बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर के बयान पर एक बार फिर से बवाल मचा है.चंद्रशेखर ने नालंदा में एक और विवादास्पद बयान देते हुए दावा किया कि पैगंबर मुहम्मद 'मर्यादा पुरोषोत्तम' थे और भगवान ने उन्हें बुराई को खत्म करने के लिए धरती पर भेजा था, के बाद दोबारा सियासी घमासान शुरू हो गया है.तो वहीं राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने बुधवार को दावा किया कि माथे पर टीका लगाने वाले लोगों के कारण देश गुलाम हुआ. उन्होंने आगे कहा कि ये लोग देश को फिर से गुलाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सवाल है कि एकाएक विवादास्पद बयान देने के पीछे कारण क्या है?
भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीतिक काट
लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने में कुछ हीं दिन शेष है. चुनाव में धार्मिक भावनाओं को उबारने और उनका चुनावी लाभ उठाने का पुराना रिकॉर्ड है. पिछले कुछ वर्षों से यह खतरनाक प्रवृति लगातार बढ़ रही है. राजनेता मतदाताओं को कभी धार्मिक उन्माद की खुराक दे देते हैं तो कभी संस्कृति के नाम पर भड़काने की कोशिश होती है. इस संदर्भ से देखे तो चंद्रशेखर और जगदानंद के बयान का अर्थ निकलना आसान हो सकता है. दरअसल विपक्ष को पता है कि भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के खेल को इसी गेंद से मात दिया जा सकता है.
साल 2014 का चुनाव
बता दें भारत की दो मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच 2014 के चुनावी युद्ध में अलग-अलग वैचारिक अतिवाद थे, जो सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर गूंजते थे. जबकि 2014 के आम चुनावों के दौरान बहुत सारी बयानबाजी भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों पर केंद्रित थी, लेकिन चुनावी लड़ाई ने तब ज़्यादा जोर पकड़ा जब कांग्रेस को सामाजिक और आर्थिक आरक्षण के माध्यम से वोट पाने के लिए भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों को खुश करने के आरोपों का सामना करना पड़ा और ‘दक्षिणपंथी’ भाजपा ने दावा किया कि इस तरह की तुष्टिकरण भारत की मुख्यतः हिंदू आबादी की प्रगति की वजह से हुआ. चुनाव अभियान के भाषणों ने हिंदुओं को राजनीतिक रूप से एकजुट करने के लिए बहुसंख्यक उत्पीड़न की भावना को उजागर किया . वैचारिक, धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन को गहराते हुए किया गया.
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू का दाव
अब याद कीजिए अक्टूबर 2015 में दिए लालू का बयान,बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार अभियान के लिए रवाना होने से पूर्व लालू ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि ‘जो लोग मांस खाते हैं वह 'सभ्य' नहीं हैं. गरीब लोग अपनी भूख मिटाने के लिए मांस खाते हैं. जो लोग देश से बाहर जाते हैं बीफ खाते हैं. यहां तक कि हिंदू भी बीफ खाते हैं। बीफ और बकरे के मांस में अंतर नहीं है’.इसके बाद गाय बिहार में चुनाव का मुद्दा बन गई . बाद में लालू ने अपने बयान पर स्पष्टीकरण भी दिया था. बिहार के दोनों नेताओं के ताजा बयान को राजनीतिक पंडित लालू का सियासी दाव बता रहे हैं.
सांप्रदायिक बयानबाजी के क्या हैं अर्थ
विपक्षी नेताओं को पता है कि सांप्रदायिक बयानबाजी से ही भाजपा को पटकनी दी जा सकती है. राजद की 2015 के चुनाव की सफलता ने बता दिया था कि भाजपा और भगवा ब्रिगेड को अगर मात देनी है तो ये हथियार कारगर हो सकता है. अब इस संदर्भ में चंद्रशेखर और जगदानंद के बयान को देखे तो राजनीति की परत दर परत खुलती चली जाएगी.बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर यादव ने जनवरी में हिंदू महाकाव्य रामचर्तिमानस, मनु स्मृति और साथ ही 'बंच ऑफ थॉट' पुस्तक समाज में नफरत फैलाने का बयान देकर विवादों में घिरे तो बुधवार को नालंदा में एक कदम आगे बढ़ते हुए दावा किया कि पैगंबर मुहम्मद 'मर्यादा पुरोषोत्तम' थे और भगवान ने उन्हें बुराई को खत्म करने के लिए धरती पर भेजा था.
रामचरितमानस और पैगंबर मुहम्मद साहब पर चंद्रशेखर के ताजा बयान के मायने
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर ने 'रामचरितमानस' और पैगंबर मुहम्मद साहब को लेकर जो कुछ कहा है, उसकी गूँज बिहार की राजनीति में अब तक सुनाई दे रही है.राजनीतिक पंडितों के अनुसार दोनों बयान जानबूझकर व्यक्तिगत लाभ के लिए दिए गए थे. जब चन्द्रशेखर यादव ने रामचरितमानस के खिलाफ टिप्पणी की थी, तब राजद ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की थी. इस बयान का उस समय राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने समर्थन किया था.राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तब शिक्षा मंत्री का समर्थन करते हुए कहा था कि ‘कमंडलवादियों’ को नाराज कर दिया है; कमंडल के आगे मंडल हार नहीं मानेगा.हालाकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने मामले को तूल पकड़ते देख मंत्री को ऐसे बयान देने से परहेज करने की सलाह दी है.
भाजपा का पलटवार
चंद्रशेखर के बयान के बाद बिहार में महागठबंधन के अंदर ही बयानबाज़ी शुरू हो गई . जेडीयू विधायक संजीव सिंह ने यहां तक कहा दिया कि चंद्रशेखर को 'दिमाग़ का इलाज़ कराने की ज़रूरत' है. "अगर चंद्रशेखर को इतनी ही तकलीफ़ है तो हिन्दू धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपना लें. ये हमारी सहनशीलता को हमारी कमज़ोरी समझ रहे हैं. कोई भी मंत्री हमारे धर्म के बारे में अनाप शनाप बोलेंगे तो ये बर्दाश्त के बाहर होगा."उस समय बिहार सरकार के एक मंत्री के बयान के बाद महागठबंधन की प्रमुख साझेदार पार्टियों के बीच ही ज़ुबानी जंग एक बार फिर से तेज़ हो गई है. इसमें एक तरफ आरजेडी है, जिसके कोटे से चंद्रशेखर को मंत्री बनाया गया है तो दूसरी तरफ तमाम पार्टियां.
जगदानंद का विवादास्पद बयान
इधर जगदानंद सिंह ने बुधवार को दावा किया कि माथे पर टीका लगाने वाले लोगों के कारण देश गुलाम हुआ. उन्होंने आगे कहा कि ये लोग देश को फिर से गुलाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके बयान के बाद, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा जैसे भाजपा नेताओं ने कहा 'की ओर से जगदानंद सिंह को अपमानित करने के बावजूद, वह पार्टी के साथ बने रहे. कम से कम उन्हें अपने बेटे सुधाकर सिंह से सीख लेनी चाहिए. वह जो कुछ भी सनातन धर्म के खिलाफ बोल रहे हैं वह उस पार्टी के कारण है, जिसमें वह रह रहे हैं. उनके बेटे ने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया है और मंत्रालय छोड़ दिया. वे राजनेताओं का तुष्टिकरण कर रहे हैं और एक विशेष समुदाय के मतदाताओं को प्रेरित कर रहे हैं. राज्य की जनता उन्हें और राजद को देख रही है और चुनाव में सबक सिखाने वाली है.'
भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद ने कहा कि “प्रोफेसर चन्द्रशेखर और जगदानंद सिंह जैसे नेता भगवान कृष्ण या भगवान राम में विश्वास नहीं करते हैं।.इसलिए हमें उनसे ज्यादा उम्मीद नहीं है. जगदानंद सिंह अयोध्या के राम मंदिर पर आपत्ति जता रहे हैं और उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन कर रहे हैं. वह हिंदू और सनातन धर्म के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं.
पप्पू यादव के विरोधी तेवर
जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने भी जगदानंद सिंह के बयान की आलोचना की. पप्पू यादव ने कहा, 'मैं ऐसी किसी भी चीज पर कड़ी आपत्ति जताता हूं, जो किसी समुदाय को ठेस पहुंचाती हो. अगर किसी को इस मुद्दे के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो उन्हें इस बारे में बात करने से बचना चाहिए.धर्म से संबंधित जो भी बयान दिए गए वह उचित नहीं हैं.कहा कि बड़े दलों या छोटे दलों के नेताओं को समाज में सांप्रदायिकता फैलाने का कोई अधिकार नहीं है.
कांग्रेस ने भी खेला था खेल
कभी देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है. तो कांग्रेस भी इससे पीछे नहीं रही. तो राजीव गांधी के शाहबानों प्रकरण की चर्चा भी जानकार कर रहे हैं कि इसका फायदा कैसे उठाया गया. इसी क्रम में राजद के दो नेताओं के बयान राजनीतिक धरातल पर परखे जा रहे हैं.
मुस्लिम तुष्टीकरण का नया मोड़
बता दें 2006 में सच्चर रिपोर्ट के प्रकाशन ने ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ के विचार को नया मोड़ दे दिया. एक सरकारी दस्तावेज़ के तौर पर इस रिपोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत के मुसलमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं और हाशिये पर पड़े हैं. हालांकि रिपोर्ट ने इस बात पर पूरी स्पष्टता से ज़ोर दिया है कि मुस्लिम समुदाय का ढांचा विविधतापूर्ण एवं गहरे परतों में बंटा है, ‘मुस्लिम उत्पीड़न’ भारतीय राजनीति के एक नए आधार के रूप में आकार लेना शुरू कर दिया है. खासकर गैरभाजपा दलों ने इस रिपोर्ट का उपयोग यह जताने के लिए किया कि ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ दरअसल हिंदुत्ववादी ताकतों का गढ़ा हुआ मिथक है और यह कि मुसलमानों से एक बहिष्कृत समुदाय के तौर पर बरताव किया जाना चाहिए.हिंदुत्ववादी राजनीति ने इस प्रतिक्रिया के मद्देनज़र खुद को बदल लिया. तर्क दिया गया कि कांग्रेस ने मुसलमानों को सशक्त बनाने में कोई गंभीर रुचि नहीं ली. उन्हें केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि वे और हाशिये पर चले गए और बहिष्कृत हो गए.
बहरहाल लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जुबानी जंग तेज़ हो गई है. पक्ष- विपक्ष दोनों एक दूसरे को मात देने के लिए अपने अपने मोहरे चलने शुरु कर दिए हैं .ऐसे में राजनीतिक बिसात पर कौन बाजी मारेगा ये समय हीं बताएगा, क्योकि राजनीतिक पंडितों के अनुसार चंद्रशेखर और जगदानंद का बयान शुद्द रुप से राजनीतिक बयान है जो बाजपा को धाराशाई करने के लिे दिया गया हो सकता है.