स्वास्थ्य मंत्री जी जरा देखिए अपने जिला अस्पताल की कुव्यव्स्था, जमुई सदर अस्पताल मरीजों के लिए बना 'जानलेवा'! इलाज नहीं मिलने से तड़प तड़प कर युवती की हो गई मौत, जिम्मेदार बने लापरवाह
जमुई- स्वास्थ्य मंत्री जी समय मिले तो जरा अपने सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था को देख लीजिएगा. मंत्री जी जमुई का सदर अस्पताल काफी चर्चा में है. आलम यह है कि बिहार के जमुई जिले का सदर अस्पताल मरीजों के लिए जानलेवा बनता जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग के मुखिया जी अब देखिए न एक महिला मरीज को उसके परिजन अस्पताल में इस आशा के साथ लाए थे कि उसका इलाज हो जाएगा. सामान्य वार्ड तो छोड़िए इमरजेंसी वॉर्ड में परिजन डेढ़ घंटे तक डॉक्टर की तलाश करते रहे, लेकिन क्या मजाल की परिजन डॉक्टर को खोज पाएं. कोई भी डॉक्टर इमरजेंसी वार्ड में मरीज को देखने तो दूर झांकने तक नहीं आया. आए तो युवती की हालत को देखते हुए पीएमसीएच रेफर कर दिया. लेकिन घंटो इंतजार के बाद एम्बूलेंस तो नहीं मिला लेकिन युवती ने अपना दम जरुर तोड़ दिया. आप तो राजधानी में स्वास्थ्य महकमें में सुधार के साथ आला दर्जे के इलाज का दावा करते नहीं थकते लेकिन हकीकत आपके दावे के ठीक उलट है, पता करा लीजिए, आप शायद हकीकत से रुबरु हो सकेंगे.
मामला पिछले मंगलवार का है, बताया जा रहा है की एक युवती जो की जमुई के सदर अस्पताल में इलाज कराने आई थीउसकी नाजुक हालत को देखते हुए पटना पीएमसीएच रेफर कर दिया था लेकिन घंटो इंतजार करने के बावजूद अस्पताल प्रशासन एंबुलेंस मुहैया नही करा पाई. जिसके कारण उक्त युवती की तड़प तड़प कर सदर अस्पताल में ही मौत हो गई. भले ही यह बात सुनने में अटपटा लग रहा हो लेकिन सदर अस्पताल के स्वास्थ्य व्यवस्था की यह कड़वी सच्चाई है.
सदर अस्पताल में संसाधनों के अभाव के अलावा ध्वस्त स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ जिम्मेदारों की मानवता भी मर सी गई है. अपने अलग- अलग कारनामों से लगातार सुर्खियों में रहे सदर अस्पताल प्रबंधन की नींद नहीं खुली है. नतीजतन कुव्यवस्था का दंश इलाज के लिए आए मरीजों व स्वजन को झेलना पड़ रहा है. दरअसल एक घटना ने पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
सोनो प्रखंड के कोड़ाडीह गांव निवासी केदार मंडल द्वारा अपनी पुत्री बिंदी देवी को पेट दर्द की शिकायत पर देर शाम 7:45 बजे सदर अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था, जहां युवती की गंभीर स्थिति को देखते हुए डॉक्टर मृत्युंजय कुमार द्वारा पटना रेफर किया गया था, लेकिन पटना ले जाने के लिए 102 एंबुलेंस नहीं मिली. जिस वजह से साढ़े चार घंटे तक तड़पकर युवती की मौत देर रात 12:30 बजे हो गई. पीड़ित पिता केदार मंडल ने बताया की वे अपनी पुत्री को पटना पीएमसीएच ले जाने के लिए कई बार 102 पर फोन किया, सदर अस्पताल के अधिकारियों को भी फोन लगाया, चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों ने भी एंबुलेंस के लिए प्रयास किया लेकिन किसी ने उनकी गुहार नहीं सुनी.
गरीबी की वजह से पैसा नहीं रहने पर वे प्राइवेट एंबुलेंस से पटना लेकर नहीं जा सके, नतीजतन साढ़े चार घंटे तक बेड पर ही तड़पकर उनकी पुत्री की मौत हो गई. समय पर एंबुलेंस मिलती तो शायद उनकी पुत्री की जान बच सकती थी.
बड़ी बात यह है कि अमूमन दो से तीन एंबुलेंस किसी न किसी खराबी के कारण हमेशा खड़ा हीं रहता है. गर्भवती व अन्य कार्यों के लिए तीन एंबुलेन्स को रखा गया है जबकि पटना के लिए पांच एंबुलेंस हैं लेकिन तीन एंबुलेंस कई दिनों से गैरेज में पड़ा हुआ है , जबकी दो एंबुलेंस ही तत्काल मरीजों की सेवा के लिए उपलब्ध हैं.
अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने बड़े जिला अस्पताल दो एंबुलेंस से कितने मरीजों को लाभ दे सकता है. यहां के जिम्मेदार भी लापरवाह बने हुए हैं उन्हें एंबुलेंस की जानकारी ही नहीं है. एंबुलेंस खराब है, अच्छा है, मरीजों को लाभ मिल रहा है या नहीं मिल रहा इन सारी बातों से अंजान हैं.
स्वास्थ्य विभाग के मुखिया जी ये है जमुई सदर अस्पताल का हाल. दरअसल प्रदेश भर में जो स्वास्थ्य अमला है वह प्रशासनिक दबाव नहीं होने के चलते लापरवाह हो चला है.
रिपोर्ट- सुमित सिंह