स्वामी सहजानंद सरस्वती से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज़ अमेरिका से आएंगे पटना, 1 जुलाई को समारोह

PATNA :  पटना स्थित के ए.एन. सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में रविवार यानी 1 जुलाई को स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज़ों  के फिर वापस आने पर समारोह का आयोजन होगा। इस मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी मौजूद रहेंगे।

स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज पचास और साठ के दशक में अमेरिका चले गए थे। स्वामी सहजानन्द सरस्वती पर पिछले साठ वर्षों से भी अधिक समय तक  काम करने वाले वजीर्निया यूनिवर्सिटी ( अमेरिका ) के प्रोफेसर वाल्टर हाउजर  ने इन दस्तावेजों को संरक्षित व सुरक्षित कर इस पर लंबे समय तक शोध किया है। अब इन दस्तावेज़ों  की वापसी में  प्रो वाल्टर  हाउजर के साथ-साथ   अध्येयता कैलाश चंद्र झा और 'सीताराम ट्रस्ट' के सचिव  डॉक्टर सत्यजीत कुमार सिंह की प्रमुख भूमिका है।


कैलाशचंद्र झा 74 आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। वे 1974 से ही प्रो वाल्टर हाउजर के साथ जुड़े रहे हैं। डॉ. सत्यजीत सिंह अभी सीताराम आश्रम ट्रस्ट , बिहटा के सचिव  हैं। प्रो  हाउज़र आजादी के पश्चात उनलोगों  में हैं जिन्होंने सबसे पहले बिहार को ध्यान में रख कर काम करना शुरू किया। पहले स्वामी सहजानन्द सरस्वती एवं बाद  बिहार में आ रहे सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों पर भी उनकी पैनी नजर थी। वे नब्बे के दशक तक नियमित रूप से बिहार आते रहे हैं। प्रो वाल्टर हाउजर ने दुनिया के कई बड़े शोधकर्ताओं को बिहार पर काम करने के लिए प्रेरित किया है। प्रो विलियम पिंच और प्रो  वेंडी सेंगर उनलोगों में प्रमुख हैं।

स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़े दस्तावेजों में मुख्य रूप से उनकी चिट्ठियां शामिल हैं। उन्होंने  देश के बड़े नेताओं  राजेन्द्र प्रसाद,  सुभाषचंद्र बोस,  जयप्रकाश नारायण,  राम मनोहर लोहिया,  आचार्य नरेंद्र देव किसान नेता इंदुलाल याग्निक, कम्युनिस्ट नेता पी.सी.जोशी,   ई.एम.एस नम्बूदिरीपाद डॉ. श्रीकृष्ण सिंह,  रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबा नागार्जुनएन. जी रंगा सहित कई बड़े नेताओं के साथ पत्राचार और संवाद किया था। इसके अलावा उनके भाषण, पैंफलेट, अखबारों की कतरनें, किसान सभा के कार्यकर्ताओं से उनके संवाद, बहस, विचार-विमर्श जैसी सामग्री भी इसमें शामिल है।


स्वामी सहजानन्द सरस्वती द्वारा चलाए गए किसान आंदोलन का ही प्रभाव था कि बिहार 1950 में जमींदारी उन्मूलन करने वाला  देश का पहला राज्य बना। ज्ञातव्य हो कि आजादी के आदोंलन के दौरान यह आश्रम  1927 से ही किसान सभा , पहले पटना पश्चिमी किसान सभा, फिर बिहार प्रांतीय किसान सभा और बाद में अखिल भारतीय कसान सभा का 1936 से 1944 तक प्रधान कार्यालय था। ' सीताराम आश्रम' में देश के बड़े-बड़े नेताओं का आना-जाना लगा रहता था। स्वामी सहजानन्द सरस्वती की समाधि भी यहीं है। किसान आंदोलन के अलावा यह आश्रम स्वाधीनता आंदोलन का भी  प्रधान केंद्र रहा है।

इन दस्तावेजों को प्रो  वाल्टर हाउज़र के प्रमुख शिष्यों प्रो वेंडी सेंगर व प्रो विलियम आर. पिंच की मौजूदगी में सीताराम आश्रमबिहटा के प्रतिनिधियों को सौंपा जाएगा।

  'सीताराम आश्रम ' को स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़ी सामग्रियों व शोध केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है। डॉ सत्यजीत के सीताराम आश्रम, बिहटा के सचिव बनने के पश्चात इस दिशा में कार्य प्रारंभ हुआ। अभी सीताराम आश्रम के जीर्णोद्धार का कार्य  प्रगति पर है। खुद सीताराम आश्रम में भी बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध हैं।


भविष्य में सीताराम आश्रम एवं अमेरिका से आए सामग्रियों को सावर्जनिक कर उनके प्रकाशन की योजना है। सामग्रियों के डिजिटाइजेशन एवं संरक्षण में  राज्य सरकार  का सहयोग अपेक्षित है।

कुछ माह पहले स्वामी सहजानन्द सरस्वती के संस्मरणों की आत्मकथात्मक पुस्तक मेरा जीवन संघर्षका अंग्रेजी अनुवाद माइ् लाइफ स्ट्रगल( प्रो वाल्टर हाउज़र और कैलाश चंद झा द्वारा अनुदित)   के नाम से प्रकाशित हुआ है।  स्वाधीनता आंदोलन खासकर आजादी के ठीक पहले के दो दशकों के इतिहास पर इससे और अधिक रोशनी पड़ेगी।