बिहार में होली की छायी खुमारी, रंग-गुलाल से आसमान हो गया गुलाबी..
होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते रहे हैं. होली के दिन सभी बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं, हम अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच और अधिकारी और कर्मचारी का भेद मिटाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं. होली का रंग हमें सहजता और सरलता का परिचायक है. जीवन शैली और शहरीकरण ने हमारे तीज-त्योहारों पर गहरा असर डाला है. त्योहार हमारी संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करते हैं.लेकिन सामाजिक भाईचारे और आपसी प्रेम और मेलजोल का यह पर्व होली भी अब बदलाव का दौर देख रहा है.
होली के पर्व पर स्थानीय सांस्कृतिक आयाम इसमें नये रंगों से भरे हैं. होली के दिन पूरे वातावरण में आम के मंजर के साथ फागुन की गमक महकते हैं. चारों तरफ फूलों से लदे पौधे आम्र की मंजरी मन को सुकून देते हैं. होली का रंग तन-मन को सरोबोर कर देता है. नई ताजगी और ऊर्जा के संचार के साथ शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु की दस्तक हमारे जीवन में नई उमंग भर जाती है.
निजी जीवन में हमने इतनी कृत्रिमताएं ओढ़ ली हैं कि हम सहज व्यवहार नहीं कर पाते. होली हमें कुछ समय के लिये इस बनावटी व्यवहार से मुक्त होकर सहज होने का अवसर देती है. हमें मनुष्य और मनुष्यता का बोध कराती है.
संपत्ति, पद जैसे दंभ हमें व्यक्ति रूप में सरल-सहज नहीं होने देते तो होली का त्योहार हमें अपने रंग भूलकर रंगबिरंगी होने को कहता है. भेद और क्रोध को भुलाने वाला यह पर्व हमें स्वस्थ्य रहने का अवसर भी देता है. वही बुजुर्ग आज के होली को देख कर कहते हैं- न हंसी- ठिठोली, न हुड़दंग, न रंग, न ढप और न भंग’ ऐसा क्या फाल्गुन?
बहरहाल सूबा -ए- बिहार में रंगो का त्योहार होली लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. लोग फागोत्सव पर जम कर रंग ,गुलाल उड़ाते नजर आ रहे हैं.