भगवा लहराते बिहार के लेनिनग्राद में फहराएगा लाल परचम ! बेगूसराय की लड़ाई में गिरिराज के सामने कितने मजबूत अवधेश राय
बेगूसराय. वामपंथियों का गढ़ कहे जाने वाले बेगूसराय को "बिहार का लेनिनग्राद" की संज्ञा दी गई थी, लेकिन बदली परिस्थियों में लाल ब्रिगेड अब भगवा लहर से जूझ रही है। पिछले 10 साल से यहां भगवा लहर रहा है और भाजपा फिर से वही कमाल करने की चाहत में है. भाजपा ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को फिर से बेगूसराय से मैदान में उतारा है, जबकि सीपीआई ने इस सीट पर महा गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में अवधेश राय को नामित किया है. ऐसे में "बिहार का लेनिनग्राद" इस बार किस ओर जाएगा यह बड़ा सियासी सवाल बना हुआ है. इसमें पिछले दशकों के दौरान हुए मुख्य सियासी बदलाव में मतदाताओं की मानसिकता भी है.
2014 के ऐतिहासिक चुनावों में देखा गया जब स्वर्गीय भोला सिंह ने सीपीआई के विधायक के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने के दशकों बाद भाजपा के टिकट पर बेगूसराय सीट जीती थी। पांच साल बाद, जब भोला सिंह नहीं रहे, तो भाजपा यहां गिरिराज सिंह को ले आई, जिन्होंने "स्थानीय" कन्हैया कुमार को करारी हार दी। हालांकि इस बार की चुनावी लड़ाई उतनी दिलचस्प नहीं है जितनी 2019 में थी. इसका श्रेय कन्हैया कुमार की शानदार सियासी लड़ाई को जाता है, जिन्होंने एक उत्साही अभियान शुरू किया था, जिसमें जावेद अख्तर, शबाना आज़मी, स्वरा भास्कर और प्रकाश राज जैसी कई मशहूर हस्तियां शामिल हुई थीं। हालाँकि कन्हैया को यहां जीत नहीं मिली.
हालाँकि, पाँच साल बाद, कई परिवर्तनशील प्रतीत होते हैं। गंगा के उस पार, लखीसराय जिले के बड़हिया के रहने वाले गिरिराज सिंह के खिलाफ "बाहरी व्यक्ति" का टैग भी चुनाव में एक मुद्दा बना है। वहीं बेगूसराय में कई ऐसी योजनाएं रही जिसे पूर्ण होने की आस आजतक लोगों को है. बावजूद इसके बेगूसराय में गिरिराज का उग्र हिंदूवादी व्यक्तित्व एक बार फिर युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है. इसकी बानगी उस समय भी दिखी जब गिरिराज ने एक चुनावी भाषण में कहा- "हमें पाकिस्तान समर्थक गद्दारों के वोटों की आवश्यकता नहीं है।" जमीनी स्तर पर ऐसे उत्साही भाषणों और नारों का बड़ा असर देखने को मिलता है. इसी का नतीजा है कि जिस बेगूसराय की पहचान "बिहार का लेनिनग्राद" के रूप में थी वहां अब हिंदुत्व का परचम लहरा रहा है. यही गिरिराज के अब तक के चुनाव प्रचार में भी देखने को मिला है . वे खूब बढ़ चढ़कर इस मुद्दे को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं.
दूसरी ओर वामपंथी उम्मीदवार पूर्व विधायक अवधेश राय को कई मोर्चों पर जूझना है. इसमें एक तो बेगूसराय का जातीय समीकरण है. भूमिहार बहुल इस सीट पर पिछले चुनावों को देखें तो 2009 को छोड़कर हमेशा उच्च जाति के भूमिहार को सांसद चुना गया है. सिर्फ 2009 में , जब जेडी (यू) के मोनाजिर हसन बेगुसराय के सांसद बने थे. गिरिराज भी भूमिहार जाति से आते हैं. वहीं अवधेश राय ओबीसी यानी यादव जाति से आते हैं. वहीं चुनाव प्रचार के मामले में भी गिरिराज और भाजपा की तुलना में अब तक अवधेश राय के लिए उस किस्म का अभियान नहीं देखा गया है. हालांकि गिरिराज सिंह पर निशाना साधते हुए अवधेश राय लगातार कह रहे हैं कि "पिछले पांच वर्षों में हिंदू बनाम मुस्लिम के अलावा कुछ नहीं किया है." इतना ही नहीं राजद नेता ने एक चुनावी रैली में मतदाताओं से यह भी कहा कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर भरोसा न करें। ये लोग चीनी सामान की तरह हैं जो बिना किसी गारंटी के आते हैं।'
इतना ही नहीं वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में बेगूसराय में सीपीआई को दो सीटें मिलीं जबकि भाजपा-जद (यू) गठबंधन केवल तीन सीटें जीत सकी थी. इन आंकड़ों को आगे रखकर अवधेश राय दावा कर रहे हैं कि इस बार वे बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे. ऐसे में 13 मई को, जब 21.86 लाख मतदाता बेगूसराय में अपना वोट डालेंगे, तो वे फिर से इसे साबित करेंगे कि "बिहार का लेनिनग्राद" में लाल ब्रिगेड मजबूत होता है या भगवा लहर फहरता है .