Bihar Politics: ...तब लालू जी SP की खुशामद कर रहे थे...अनुरोध कर रहे थे, फिर भी एसपी ने लालू यादव की बात मानने से इंकार कर दिया था...
प्रतापपुर गोलीकांड पर शिवानंद तिवारी का खुलासा. उन्होंने लिखा है कि तब लालू यादव एसपी से प्रतापपुर न जाने की खुशामदगी कर रहे थे. लेकिन सिवान के आरक्षी अधीक्षक ने सुनने से इनकार कर दिया था.
Bihar Politics: पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी और बेटे रविवार को राजद में शामिल हो गए. लालू प्रसाद यादव ने उन्हें दल में शामिल कराया. इस निर्णय पर पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री शिवानंद तिवारी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. वे कहते हैं कि कल(रविवार) हिना जी अपने बेटे के साथ राजद में शामिल हो गईं. अच्छा हुआ, अगर देखा जाए तो यह अलगाव होना ही नहीं चाहिए था. पता नहीं क्या हुआ कि शहाबुद्दीन के बाद हिना शहाब को तीन-तीन चुनाव राजद से अलग होकर लड़ना पड़ा. लेकिन हमेशा निर्दलीय लड़ीं. कहीं और नहीं गईं. जो काम कल हुआ उसको पहले हो जाना चाहिए था. मेरी राय यही है. कहावत है 'देर आए दुरुस्त आए.'
राजनीति में बहुत कुछ देखा-सुना है
शिवानंद तिवारी ने लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखा है. वे लिखते हैं कि मेरा शरीर मुझे सक्रिय रहने की इजाज़त नहीं दे रहा है. इसलिए अपने आपको मैंने समेट लिया है. लेकिन बहुत लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहा हूँ. बहुत कुछ देखा और सुना है. उन स्मृतियों को काग़ज़ पर उतार दूँ, यही अंतिम इच्छा है. वे आगे लिखते हैं कि कल हिना जी अपने बेटे के साथ राजद में शामिल हो गईं. अच्छा हुआ. अगर देखा जाए तो यह अलगाव होना ही नहीं चाहिए था. इस खबर को पढ़कर मुझे प्रतापपुर कांड की याद हो आई. पहली दफ़ा हिना जी को मैंने प्रतापपुर कांड के अगले दिन देखा था. शायद नई-नई शादी हुई थी. 2001 के पहले शहाबुद्दीन से भी मेरा रिश्ता सिर्फ़ देखा-देखी का था.
..तब लालू यादव SP की खुशामदी कर रहे थे
शिवानंद तिवारी कहते हैं कि जिस दिन प्रतापपुर कांड हुआ था उस दिन मैं 1 अणे मार्ग में ही था. अवध बिहारी (चौधरी) भाई और एजाजुल जी तो थे ही. और कौन कौन थे इसका मुझे स्मरण नहीं है. उन दिनों मैं सरकार में मंत्री भी था.सिवान की पुलिस ने सरकार से लगभग बग़ावत कर प्रतापपुर पर चढ़ाई कर दी थी. ज़िला पुलिस तो थी ही, उत्तर प्रदेश की पुलिस से भी सिवान पुलिस ने सहयोग लिया था. लालू जी सिवान के एसपी से प्रतापपुर नहीं जाने को जिस तरह ख़ुशामदी लहजे में अनुरोध कर रहे थे, वैसी भाषा में राज्य सरकार अपने किसी एसपी से बात नहीं करती है. लेकिन एसपी ने लालू जी को सुनने से इंकार कर दिया. उस दिन वहाँ के डीआईजी भी सिवान में मौजूद थे. लालू जी के कहने पर उन्होंने भी रोकने की कोशिश की तो पुलिस ने उन पर भी हमला कर दिया. किसी तरह कमरे में छिप कर उन्होंने अपनी जान बचाई थी. हालत कंट्रोल के बाहर हो गई थी. यहाँ तक कि राँची में फ़ौज को ताकीद किया गया था कि हालत नियंत्रण के बाहर हो जाने पर आपकी मदद ली जा सकती है. दरअसल पुलिस के सामने अपनी इज़्ज़त बचाने की चुनौती हो गई थी. वहाँ से एजाजुल जी के मोबाइल पर खबर आ रही थी कि पुलिस एनकांउटर कर रही है.
शहाबुद्दीन के साथ खुद को जोड़ना नहीं चाहता था-शिवानंद तिवारी
अगले दिन वहाँ पार्टी की ओर से टीम भेजने की बात हो रही थी. आरआर प्रसाद डीजीपी भी वहाँ मौजूद थे. उन्होंने कहा कि बाबा, यानी मुझे वहाँ भेजना उपयुक्त होगा. क्यों कि मेरे पिता जी का पुलिस विभाग से और विशेष रूप से निचले हिस्से की पुलिस के बीच बहुत आदर और सम्मान था. लालू जी ने मुझे कहा कि आप चले जाइए. मैंने तत्काल इंकार कर दिया. क्योंकि मैं शहाबुद्दीन के साथ अपने को जोड़ना नहीं चाहता था. तब लालू जी ने मेरि ठुड्डी पकड़ कर कहा कि बाबा, 'राज के सवाल बा. चल जा.' अब मेरे सामने रास्ता क्या था, अगले दिन हमलोग पटना से प्रतापपुर के लिए प्रस्थान किये. लालू जी ने मरहूम तस्लीम साहब. अब्दुलबारी सिद्दीक़ी, और रामकृपाल की टीम बना दी. हम सब लोग अपनी अपनी गाड़ी से प्रतापपुर के लिए प्रस्थान किये. आगे पीछे पुलिस की सायरन वाली गाड़ी.
प्रतापपुर में प्रवेश करने के लिए जैसे ही हमलोग नहर पुल पर पहुँचे वहाँ आश्चर्यजनक दृश्य दिखाई दिया. सामने के मकानों की दिवार पर गोलियों के अनगिनत निशान दिखाई दे रहे थे. स्थिति की भयावहता की गवाही वे निशान दे रहे थे. गाँव में प्रवेश करने के बाद बायीं ओर शहाबुद्दीन का घर था. वहाँ क़रीब हज़ार डेढ़ हज़ार नौजवानो ने तैश में लालू यादव मुर्दाबाद, राबड़ी देवी मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए मेरी गाड़ी को घेर लिया. किसी तरह गाड़ी से उतर कर शहाबुद्दीन के नये बने बइठका के बरामदे में पर पहुँचा. एक दो मिनट नारा सुनने के बाद उनको किसी तरह शांत किया. नीचे उतर कर पेड़ के नीचे मचान पर बैठा. माइक का इंतज़ाम था. तस्लीम साहब हमलोगों में सबसे सीनियर थे. उनसे मैंने बोलने का अनुरोध किया. लेकिन वे तैयार नहीं हुए. मुझे ही बोलने के लिए कहने लगे. उत्तेजित नौजवानों की भीड़ को शांत करने के लिए पुलिस के विरूद्ध बोलना मेरी मजबूरी थी. मैंने कहा कि आप कैसे सोच सकते हैं कि लालू यादव या राबड़ी देवी शहाबुद्दीन के विरूद्ध साज़िश कर सकते हैं. अगर शहाबुद्दीन नहीं होते तो राबड़ी जी की सरकार नहीं बन पाती. कैसे पुलिस ने लगभग बग़ावत कर दिया. राबड़ी सरकार ने फ़ौज से तैयार रहने के लिए अनुरोध कर दिया था. यह सब बताया. यह भी कहा कि अगर एसपी दोषी साबित हुए तो उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी. भीड़ के शांत होने के बाद हमलोग गाँव के अंदर की ओर बढ़े. सामने मस्जिद पर गोलियों के निशान थे. गाँव की ओर बढ़ते संभवतः पहला ही मकान शहाबुद्दीन का था. उसमें शहाबुद्दीन की फ़ोटो पर गोली का निशान था. बक्सा वग़ैरह तोड़ कर सबकुछ इधर-उधर कर दिया गया था. हिना जी रोते हुए सब दिखाने लगीं . बस वही उनसे मेरी पहली और अंतिम देखा देखी है. गाँव की डरावनी तस्वीर थी. शहाबुद्दीन खेतों में फसल के बीच अपने को छिपाते हुए केहुनी के बल लंबा चल कर अपनी जान बचाए. उस घटना में संभवतः तेरह लोगों की जान गई थी. लालू जी के प्रति शहाबुद्दीन जी की निष्ठा संदेह के परे थी. पता नहीं क्या हुआ कि शहाबुद्दीन जी के बाद हिना जी को तीन तीन चुनाव राजद से अलग होकर लड़ना पड़ा. लेकिन हमेशा निर्दलीय लड़ीं. कहीं और नहीं गईं. जो काम कल हुआ उसको पहले हो जाना चाहिए था. मेरी राय यही है. कहावत है 'देर आए दुरुस्त आए.