Azam Khan News: आजम खान के सियासी भविष्य की अटकलें तेज, जानिए बसपा में जाने से फायदा होगा या नुकसान?
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान मंगलवार को 23 महीने बाद जेल से रिहा हुए। तबीयत कमजोर जरूर दिखी, लेकिन उनका तीखा अंदाज़ और तंज बरकरार रहा। जब उनसे बसपा में शामिल होने की अटकलों पर सवाल किया गया तो उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “ये तो वही लोग बताएंगे जो अनुमान लगा रहे हैं। मैं तो पांच साल से आउट ऑफ टच हूं। अखिलेश यादव के मुकदमे वापस लेने वाले बयान पर भी आजम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैं क्या कह सकता हूं जब उन्होंने कहा है।”
जेल और मुकदमों का सफर
2017 में सरकार बदलने के बाद आजम खान पर 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें से कुछ में उन्हें सजा भी मिली। वह अब तक लगभग साढ़े चार साल जेल में बिता चुके हैं। इस दौरान उनकी और बेटे अब्दुल्ला आजम की सदस्यता भी रद्द हो गई। रामपुर की राजनीति में परिवार का दबदबा कमजोर जरूर हुआ, लेकिन आजम का सियासी इतिहास और अंदाज़ उन्हें अब भी चर्चा में बनाए हुए है।
बसपा से नजदीकी की अटकलें
आजम खान के बसपा में जाने की चर्चा पहली बार तब तेज हुई जब जून में जेल से बाहर आने के बाद उनकी पत्नी तंजीन फात्मा ने नाराजगी जताई थी। इसके बाद मायावती से उनकी मुलाकात की चर्चाएं शुरू हुईं। इस पर बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने बयान दिया कि आजम के आने से पार्टी मजबूत होगी। हालांकि, सपा नेतृत्व का मानना है कि आजम अब भी पार्टी के साथ हैं। खुद अखिलेश यादव ने भी कहा कि आजम समाजवादी मूल्यों के साथ भाजपा के खिलाफ संघर्ष जारी रखेंगे।
सपा के लिए क्यों अहम हैं आजम
आजम खान सपा के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। 2009 में उन्होंने कुछ समय के लिए पार्टी छोड़ी थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने उन्हें वापस पूरे रुतबे के साथ शामिल किया। रामपुर और आसपास के इलाकों में आजम की पकड़ आज भी मजबूत है। जेल में रहने के बावजूद वे सपा के राष्ट्रीय महासचिव बने रहे। यही वजह है कि अल्पसंख्यक राजनीति में उनकी मौजूदगी अब भी अहमियत रखती है।
कपिल सिब्बल को दी गई राज्यसभा सीट
कपिल सिब्बल को मिली राज्यसभा सीट भी आजम खान के मुकदमों की पैरवी से जोड़कर देखी गई। हाई कोर्ट में उनके मामलों की लड़ाई भी ज्यादातर सपा से जुड़े वकीलों ने ही लड़ी। यहां तक कि समर्थकों की नाराजगी के बावजूद आजम ने 2024 में मुरादाबाद में एसटी हसन को हटवाकर रुचि वीरा को लोकसभा पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाई।
क्यों आसान नहीं है अलग राह
आजम खान जानते हैं कि सपा से इतर किसी और पार्टी में उनके तेवर और तौर-तरीके फिट नहीं बैठेंगे। 2009 में वह यह प्रयोग पहले ही कर चुके हैं। अल्पसंख्यक वोटरों की मजबूती फिलहाल सपा के साथ ही है और मुस्लिम नेता भी कहते हैं कि समुदाय को सपा को वोट देने के लिए किसी चेहरे की जरूरत नहीं। इसी बीच बसपा से नजदीकी और जमानत को भाजपा की रणनीति बताने वाले विश्लेषण भी सामने आ रहे हैं। खुद को कभी भाजपा की “आइटम गर्ल” कह चुके आजम जानते हैं कि किसी और दल में जाना उन्हें “बी टीम” कहलाने का खतरा देगा। यही वजह है कि उनके लिए अलग राह चुनना इतना आसान नहीं होगा।