UP NEWS: आंबेडकर के जरिए मिशन 2027 में जुटी भाजपा, विपक्ष की PDA की नैरेटिव को तोड़ने की तैयारी

UP NEWS: आंबेडकर के जरिए मिशन 2027 में जुटी भाजपा, विपक्ष की PDA की नैरेटिव को तोड़ने की तैयारी

लखनऊ: वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने वंचित समाज से जुड़ने की बड़ी रणनीति तैयार की है। डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती को केंद्र में रखकर भाजपा दलितों, अति पिछड़ों और वंचितों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है। इसके साथ ही वह विपक्ष द्वारा बार-बार उठाए जा रहे संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे आरोपों का जवाब भी इसी माध्यम से दे रही है।


पहली बार 13 दिन तक मनाई जा रही है आंबेडकर जयंती

इस बार पार्टी ने डॉ. आंबेडकर की जयंती को एक दिन नहीं, बल्कि पूरे 13 दिन तक मनाने का फैसला किया है। इसके तहत पूरे प्रदेश में अलग-अलग आयोजन किए जा रहे हैं। दलित और पिछड़े युवाओं को जोड़ने के लिए मैराथन का आयोजन भी इसी कड़ी में किया गया।


विपक्ष के पीडीए फॉर्मूले से मिली चुनौती का जवाब

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फार्मूले के जरिए भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी। इसका असर उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन पर भी दिखा। अब भाजपा उसी वर्ग को दोबारा जोड़ने के लिए खास रणनीति बना रही है। पार्टी नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है कि वे वंचितों के बीच जाकर भाजपा की नीतियों को समझाएं और फैली हुई भ्रांतियों को दूर करें।


बसपा के कमजोर पड़ने से भाजपा को दिख रही संभावनाएं

बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव घटने के बाद भाजपा को लगता है कि उसका परंपरागत दलित वोट अब आकर्षित किया जा सकता है। इसी उद्देश्य से आंबेडकर जयंती से पहले प्रदेशभर में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमाओं की सफाई कराई गई और दीप प्रज्वलन जैसे कार्यक्रम किए गए। भाजपा मानती है कि प्रतीकों के जरिए दलित समाज से जुड़ना अब पहले से अधिक जरूरी हो गया है।


कांग्रेस-सपा पर संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर हमले की तैयारी

15 से 25 अप्रैल तक भाजपा नेता दलित बस्तियों में जाकर यह बताने वाले हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने ही पहले डॉ. आंबेडकर को नुकसान पहुंचाया था। पार्टी यह भी याद दिलाएगी कि 1952 के चुनाव में कांग्रेस ने ही बाबा साहेब को हराया और 1954 के उपचुनाव में उनके निजी सहायक को ही उनके खिलाफ उतार दिया गया था। नेहरू द्वारा उनके खिलाफ प्रचार किए जाने की बात को भी प्रमुखता से उठाया जाएगा।


दलित मतदाताओं पर फोकस करने की चुनावी वजह

उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में 84 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। लेकिन प्रदेश की लगभग 300 सीटों पर दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनमें से 20 जिले ऐसे हैं जहां एससी-एसटी आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है। लगभग 100 सीटें ऐसी हैं जहां केवल 5 से 10 प्रतिशत दलित वोट भी चुनाव परिणाम को पलट सकते हैं। यही कारण है कि भाजपा मिशन 2027 को ध्यान में रखते हुए दलित समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गई है।

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