सिस्टम की मनमानी पर न्याय का हथौड़ा: जिलाधिकारी के आवास की कुर्की का आदेश, कोर्ट ने कहा- 'खुद हाजिर हों DM'!

मुरादाबाद की लारा कोर्ट (भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण) ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए बिजनौर के जिलाधिकारी (DM) के शासकीय आवास को कुर्क करने का आदेश दिया है।

Muradabad - मुरादाबाद की लारा कोर्ट (भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण) ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए बिजनौर के जिलाधिकारी (DM) के शासकीय आवास को कुर्क करने का आदेश दिया है। यह सख्त आदेश भूमि अधिग्रहण के एक मामले में पीड़ित पक्ष को मुआवजा न देने और कोर्ट के आदेश की बार-बार अवहेलना करने पर दिया गया है। कोर्ट ने आगामी 9 जनवरी 2026 को डीएम को व्यक्तिगत रूप से तलब भी किया है। 

4 साल से जारी था न्याय का इंतजार, प्रशासन की टालमटोल

मामले के अनुसार, वादी उमेश की जमीन अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर 13 मार्च 2020 को निर्णय पारित हुआ था। वादी के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि पिछले चार वर्षों से यह मामला लंबित है। जिला प्रशासन भुगतान करने में सक्षम होने के बावजूद तकनीकी बहानेबाजी कर रहा था। ट्रेजरी कार्यालय में जानबूझकर कुछ शब्द अंकित कर भुगतान रोका गया, जिसके बाद कोर्ट ने उच्चतम न्यायालय के नज़ीरों का हवाला देते हुए कुर्की का आदेश जारी किया। 

आदेश 21 नियम 54 सीपीसी के तहत होगी कार्रवाई

कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की विभिन्न धाराओं के तहत कार्यवाही करते हुए स्पष्ट किया कि डीएम बिजनौर अपने शासकीय आवास को किसी भी प्रकार से स्थानांतरित (Transfer) नहीं कर पाएंगे और न ही किसी आर्थिक लाभ के लिए इसका उपयोग करेंगे। हालांकि, कार्यालय क्षमता के अनुसार वे आवास के रूप में इसका प्रयोग जारी रख सकेंगे। इससे पहले कोर्ट ने धारा 41(2) और आदेश 21 नियम 37 के तहत भी नोटिस जारी किए थे, जिन्हें प्रशासन ने अनसुना कर दिया था। 

9 जनवरी 2026 को तय होगी नीलामी की शर्तें

कोर्ट ने केवल कुर्की ही नहीं, बल्कि संपत्ति के विक्रय (Sale) की प्रक्रिया पर भी विचार शुरू कर दिया है। आदेश 21 नियम 54 (1 क) के तहत डीएम बिजनौर को कोर्ट में उपस्थित होकर कुर्कशुदा संपत्ति की बिक्री की उद्घोषणा से जुड़ी शर्तों को तय करने में सहयोग करने का निर्देश दिया गया है। 

न्यायपालिका का कड़ा संदेश: जवाबदेही तय होना जरूरी

यह मामला उन सरकारी अधिकारियों के लिए एक बड़ा सबक है जो अदालत के डिक्री (आदेश) को गंभीरता से नहीं लेते। वादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के 'राजामणि' निर्णय के अनुसार निष्पादन वादों का निस्तारण छह माह के भीतर होना चाहिए, जबकि यहाँ जिला प्रशासन चार साल से किसान के हक को दबाए बैठा है