UP NEWS: मऊ विधानसभा सीट को लेकर मचा घमासान, अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने के बाद सुभासपा ने ठोकी दावेदारी

मऊ: माफिया मुख्तार अंसारी के गढ़ मऊ की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। उनके बेटे और सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी को भड़काऊ भाषण मामले में दो साल की सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। इससे मऊ सदर सीट पर उपचुनाव की अघोषित दस्तक हो चुकी है, भले ही निर्वाचन आयोग ने अभी तक तारीख की घोषणा नहीं की हो।


राजनीतिक दलों ने शुरू की तैयारी

उपचुनाव की संभावनाओं के बीच भाजपा, समाजवादी पार्टी (सपा) और सुभासपा सक्रिय हो चुके हैं। सभी दल मऊ सदर सीट पर रणनीति बनाने में जुट गए हैं। गौरतलब है कि पिछले एक दशक से यह सीट सुभासपा के प्रभाव में रही है और हर चुनाव में उसकी भूमिका अहम रही है।


अब्बास अंसारी के साथ खड़ी सुभासपा

सुभासपा ने साफ किया है कि वह अब्बास अंसारी के साथ मजबूती से खड़ी है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अरुण राजभर ने कहा, “अब्बास की सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जाएगी और हमें उम्मीद है कि फैसला उनके पक्ष में आएगा। लेकिन अगर उपचुनाव होते हैं तो हम पूरी ताकत से मैदान में उतरेंगे और हमारा ही प्रत्याशी सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ेगा।” 2022 में अब्बास ने सपा गठबंधन के तहत सुभासपा के टिकट पर चुनाव जीता था। सुभासपा अब इस मुद्दे को एनडीए के शीर्ष नेतृत्व के सामने भी रखने की तैयारी में है।


अब्बास अंसारी ने दर्ज की थी बड़ी जीत

अब्बास अंसारी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह को 38,116 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बने थे। अब उनकी सदस्यता समाप्त होने के बाद निर्वाचन आयोग की ओर से अधिसूचना जारी हो गई है, जिससे उपचुनाव की प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है।


मऊ सीट पर सुभासपा का प्रभाव

सुभासपा का तर्क है कि 2012 से मऊ सदर सीट पर उसका दबदबा रहा है। उस वक्त कौमी एकता दल से चुनाव लड़ रहे मुख्तार अंसारी को सुभासपा ने समर्थन दिया था। 2017 में भाजपा-सुभासपा गठबंधन में महेंद्र चौहान को प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन वे हार गए थे। 2022 में अब्बास अंसारी को सपा गठबंधन से उतारा गया और उन्होंने जीत दर्ज की।


हालांकि गठबंधन बदलते रहे, लेकिन मऊ सदर सीट से प्रत्याशी सुभासपा का ही रहा है। हालांकि, हाल के चुनावों में पार्टी को झटके भी लगे हैं — घोसी विधानसभा उपचुनाव में दारा सिंह चौहान और लोकसभा चुनाव में अरविंद राजभर को हार का सामना करना पड़ा।