संभल की जामा मस्जिद का विवाद, जानें क्या है इतिहास, क्यों मच रहा है बवाल?
संभल की शाही जामा मस्जिद पर चल रहा विवाद धार्मिक और ऐतिहासिक दावों के टकराव का परिणाम है। इस मामले में एएसआई की जांच और ऐतिहासिक साक्ष्यों की प्रमाणिकता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
Uttar Pradesh News of Sambhal : उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद को एक प्राचीन हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इन दावों को खारिज करते हुए इसे ऐतिहासिक और मुगलकालीन निर्माण बताया है। इस मामले ने ऐतिहासिक तथ्यों, धार्मिक मान्यताओं और स्थानीय इतिहास के पुनर्मूल्यांकन की मांग को हवा दी है।
शाही जामा मस्जिद के विवाद की जड़
हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद के निर्माण से पहले यहां हरिहर मंदिर था। मस्जिद के अंदर मंदिर के अवशेष जैसे खंभे और अन्य निशानियां मौजूद होने का दावा किया गया है। यह स्थान वही है जहां भविष्य में भगवान कल्कि का अवतार होगा।
मुस्लिम पक्ष का जवाब:
मस्जिद को मीर बेग द्वारा 1529 में बनवाया गया था।मस्जिद के निर्माण में किसी भी मंदिर को तोड़ने का कोई प्रमाण नहीं है।मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित इमारत के रूप में दर्ज किया गया है। मस्जिद का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
मुगलकाल का निर्माण:
मुस्लिम पक्ष के अनुसार, मीर बेग (या मीर बाकी) ने इस मस्जिद का निर्माण कराया। मीर बाकी वही शख्स थे जिन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। बाबरनामा और अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में मीर बाकी को ताशकंद का निवासी बताया गया है।
तुगलककाल का संदर्भ:
तिहासकार मौलाना मोईद का कहना है कि मस्जिद की निर्माण शैली तुगलककालीन लगती है। बाबर ने मस्जिद का केवल जीर्णोद्धार कराया होगा। हालांकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद से पहले यह स्थान हरिहर मंदिर के रूप में प्रसिद्ध था।
इस मंदिर का संबंध भगवान कल्कि के अवतरण से जोड़ा जा रहा है।
धार्मिक मान्यताएं:
पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि के रूप में होगा। उनका जन्म कलियुग में उत्तर प्रदेश के संभल में होगा। संभल में श्री कल्कि धाम मंदिर स्थित है, जहां भगवान विष्णु के दसों अवतारों के गर्भगृह बनाए जाएंगे।
कोर्ट में याचिका
हिंदू पक्ष ने मस्जिद पर सर्वे और संभावित मंदिर अवशेषों की जांच के लिए अदालत में याचिका दायर की। मस्जिद के अध्यक्ष ने कोर्ट की त्वरित कार्रवाई पर हैरानी जताई। उन्होंने मंदिर से संबंधित किसी भी निशानी के अस्तित्व से इनकार किया। विवाद के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी इस मामले की जांच में शामिल किया गया है।